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उसे महात्माजी के दिए हीरे-मोती का परिणाम मिलता नजर आने लगा था. वह मेहनत से काक करता हुआ व्यापार के गुर सीख गया था और अब धीरे-धीरे उसकी पहचान भी बनने लगी थी.
चार साल बीतने पर वादे के अनुसार वह महात्माजी से मिलने के लिए आया.
वह अपने स्थान पर नहीं थे. उसने उनके शिष्यों से पूछा तो पता चला कि महात्माजी का देहांत हो चुका है. शिष्यों ने बताया कि महात्माजी ने मरते समय तुम्हारे लिए घड़े में कोई संपत्ति छोड़ रखी है. वह लेकर जाओ.
उसने वह घड़ा खोला.
घड़े में कागज के एक टुकड़े पर लिखा था. तुम कारोबार सीख चुके हो. धन की कमी नहीं है. अब एक चीज तुम्हारे पास से लुप्त होने वाली है संतोष. इसलिए मैं तुम्हें तीसरा रत्न संतोष देता हूं.
इसे अपने साथ गांठ बांधकर रख लो. बहुत बड़े व्यापारी बनोगे.
महात्माजी के तीन रत्नों की सहायता से वह युवक एक दिन खुद भी हीरे का बहुत बड़ा व्यापारी बन गया.
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आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
आप नियमित पोस्ट के लिए कृपया प्रभु शरणम् से जुड़ें. ज्यादा सरलता से पोस्ट प्राप्त होंगे और हर अपडेट आपको मिलता रहेगा. हिंदुओं के लिए बहुत उपयोगी है. आप एक बार देखिए तो सही. अच्छा न लगे तो डिलिट कर दीजिएगा. हमें विश्वास है कि यह आपको इतना पसंद आएगा कि आपके जीवन का अंग बन जाएगा. प्रभु शरणम् ऐप्प का लिंक? https://goo.gl/tS7auA
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