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उसे जलाने के लिए लोग नदी की ओर ले जा रहे थे। पोथी में उन्हें अपने प्रश्न का जवाब मिल गया। पोथी में लिखा था, ‘‘महाजनो येन गतः स पन्था।’’

अब पोथी तो कह रही थी कि जिस राह महापुरुष चलें वही उत्तम है लेकिन उन्हें इससे क्या लेना-देना कि महाजन महान व्यक्तियों के लिए कहा गया।

वे तो बनिए को ही महाजन समझ रहे थे। एक ने कहा- ये महाजन जिस रास्ते जा रहे हैं उसी पर चलें!

चारों श्मशान पहुंच गए। श्मशान के बाहर उन्हें एक गधा दिखा।

एकान्त में रहकर पढ़ने के कारण उन्होंने इससे पहले ऐसा जानवर नहीं देखा था। एक ने पूछा, ‘‘भई, यह कौन-सा जीव है?’’

पोथी फिर से पलटी गई.

उसमें लिखा था- उत्सवे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे। राजद्वारे श्मशाने च यः तिष्ठति सः बान्धवः।

जो सुख में, दुख में, अकाल में, शत्रुओं का सामना करने में, न्यायालय में और श्मशान में जो साथ दे वही बंधु हैं। लेकिन उन्होंने तिष्ठति का अर्थ बैठना लगाया।

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