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अपने बेटे को बचाने के लिए अकबर तुरंत यमुना में कूद गया. गोते मारकर बड़ी मुश्किल से उसने बच्चे को पानी में से निकाला.

बाहर आते ही उसने देखा कि यह तो बच्चा नहीं मोम का पुतला था. वह आग-बबूला हो गया और उसने दासी का सिर काटने के लिए तलवार खींच ली.

बीरबल सामने खड़े हो गए. उन्होंने कहा कि इसमें दासी का दोष नहीं है. उसने मेरे कहने से यह किया.

अकबर ने गुस्से में कारण पूछा तो बीरबल ने कहा- जहाँपनाह! आपकी बेइज्जती के लिए नहीं बल्कि आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए मुझे ऐसा करना पड़ा.

आप पुतले को अपना पुत्र समझकर नदी में कूद पड़े. जबकि इसी नाव में आपके साथ कई नामी तैराक बैठे थे.

आप उनमें से किसी को भी कूदकर बेटे की रक्षा का आदेश दे सकते थे, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया, क्यों?
अकबर ने कहा-बीरबल! यदि अपना बेटा डूबता हो तो अपने मंत्रियों या तैराकों को कहने की फुर्सत कहाँ रहती है? खुद ही कूदा जाता है.

बीरबल बोले- जैसे अपने बेटे की रक्षा के लिए आप खुद कूद पड़े, ऐसे ही हमारे भगवान जब भी अपने बच्चों को संसार की मुसीबतों में डूबता हुआ देखते हैं, वे किसी पैगम्बर या दूत को नहीं भेजते, खुद ही रक्षा के लिए प्रकट हो जाते हैं.
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