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उन्होंने प्रभु से जयंत को दिए अभयदान की बात कही और उसके प्राण न लेने का अनुरोध किया. भगवान पसीज गए.

उन्होंने कहा कि बाण को दंड देने का आदेश मिला था और वह बिना दंड दिए वापस नहीं हो सकता. इसलिए इसे अंगभंग का दंड मिलता है. बाण के प्रहार से जयंत की एक आंख फूट गई.

कहा जाता है कौए इसी कारण काने होते हैं. हनुमानजी ने लंका दहन के बाद लौटते समय देवी से पहचान चिह्न मांगा.

सीताजी ने अपना चूड़ामणि देते हुए कहा- आप प्रभु को याद दिलाना कि जब जयंत ने मेरे शरीर पर छोटा सा आघात किया था तो रधुनंदन के तीर ने जयंत का तीनों लोकों में पीछा करके दंडित किया था.

देवी बोलती रहीं- रावण ने हरण कर लिया फिर भी रघुनंदन मेरी सुध नहीं लेते? यदि एक माह के भीतर उन्होंने रावण को दंडित कर मुझे मुक्त नहीं कराया तो मैं अग्नि कुंड में कूदकर प्राण दे दूंगी.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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