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राजा युधिष्ठिर ने पूछा– भगवन! जय प्रदान करने वाले इस रक्षासूत्र में ऐसी शक्ति क्यों आती है, यह जानने की भी इच्छा है. कृपया यह भी सुनाएं.

भगवान बोले– महाराज! दैत्यराज बलि ने शुक्राचार्य के मना करने पर भी जब वामन भगवान को उनकी इच्छानुसार तीन पग भूमि का दान देना स्वीकार किया तो वामन भगवान ने उन्हें वचनबद्ध किया ताकि वह अपने वचन से पीछे न हटें.

महान बलि ने दो पग में ही अपना सर्वस्व गंवा दिया. फिर भी विचलित नहीं हुए. तीसरा पग रखने के लिए बलि ने मस्तक आगे कर दिया था. श्रीहरि ने प्रसन्न होकर बलि को पाताल लोक में वास दिया और एक मन्वंतर में इंद्र होने का वरदान दिया.

स्वयं भगवान बलि की पहरेदारी करने लगे. भगवान ने बलि को सूत्र में बांध तो लिया किंतु उन्हें सर्वस्व प्रदान कर दिया. इसीलिए रक्षा सूत्र ऐसा बंधन है जो अभीष्ट प्रदान करता है.

इसी कारण रक्षासूत्र को बांधते समय यह मंत्र पढा जाता है- येन बद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। दानवेन्द्रो मा चल मा चल।।” यानी दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ. हे रक्षासूत्र, तुम मेरे साथ रहो चलायमान न हो.

(संदर्भ: भविष्यपुराण, उत्तर पर्व एवं अन्य पुराण)

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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