वशिष्ठ नहीं माने तो विश्वामित्र ने बल प्रयोग से गाय छीनने का प्रयास किया. वशिष्य़ ने कामधेनु को रक्षक सेना प्रकट करने का आदेश किया. कामधेनु के जितने रोंए थे उतने सैनिक प्रकट हो गए.

विश्वामित्र की सारी सेना का सफाया हो गया. वशिष्ठ ने विश्वामित्र के सौ पुत्र भी शाप देकर भस्म कर दिया. विश्वामित्र इस पराजय से उदास होकर तप करने लगे.

महादेव को तप से प्रसन्न करके वरदान में दिव्यास्त्र प्राप्त किए और वशिष्ठ से लड़ने आए. वशिष्ठ ने ब्रह्मदंड के प्रयोग से विश्वामित्र के सभी अस्त्र-शस्त्र निष्फल कर दिए.

विश्वामित्र समझ गए कि तप से उन्हें भी महर्षि की पदवी और ब्रह्मदंड प्राप्त करना होगा तभी वशिष्ठ को चुनौती दे सकते हैं. घोर तप करके वह ब्राह्मण और ब्रह्मर्षि हो गए. वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में यह प्रसंद विस्तार से है जिसे कभी विस्तार से प्रस्तुत करेंगे.

हरिश्चन्द्र के पिता त्रिशंकु सशरीर स्वर्ग जाना चाहते थे. उन्होंने कुलगुरु वशिष्ठजी से अपनी इच्छा जताई. वशिष्ठ ने इसे धर्मविरूद्ध कार्य बताकर मना कर दिया. त्रिशंकु वशिष्ठ के सौ पुत्रों के पास गए. उन्होंने भी असमर्थता जताई.

नाराज त्रिशंकु ने कहा कि वह वशिष्ठ के स्थान पर अब नया पुरोहित रखेंगे. वशिष्ठ के पुत्रों ने नाराज होकर त्रिशंकु को चांडाल हो जाने का शाप दे दिया. त्रिशंकु चांडाल रूप में विश्वामित्र के पास गए और सारा हाल बताया.

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