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खाना शुरू ही किया था कि शंख आ गए. शंख ने छोटे भाई का सत्कार और कुशलक्षेम पूछने के बाद कहा- तुम मुझे मिलने आए, मेरी अनुपस्थिति में इस बाग को अपना मानकर फल ले लिया, इससे मैं प्रसन्न हूं.
किन्तु तुमसे अधर्म हो गया है. धर्म ही ऋषियों की पूंजी है. तुमसे उसका नाश हुआ है. किसी की अनुपस्थिति में और बिना उसकी अनुमति के कुछ लेने को चोरी कहा जाता है.
लिखित को बात समझ में आ गई. वह बोले- मुझसे प्रमादवश यह अपकर्म हो गया है. इसके प्रायश्चित का मार्ग बताइए? शंख बोले- राजा से यदि इस कर्म का दंड प्राप्त कर लो तो पाप का प्रायश्चित हो जाएगा.
लिखित राजदरबार गए. राजा ने उन्हें सम्मानित करना चाहा तो लिखित ने रोकते हुए कहा-राजन! इस समय में आपका पूजनीय नहीं. एक अपराधी हूं और आपसे दंड की कामना के साथ आया हूं.
लिखित ने सारा अपराध बताया. सुनकर राजा ने कहा- जैसे राजा को दंड देने का अधिकार है, वैसे ही क्षमा करने का भी अधिकार है.
लिखित ने रोका- आप का काम अपराध के दंड का निर्णय करना नहीं है. शास्त्र आपको विधान निश्चित करने का अधिकार नहीं देते. आप विधान को केवल क्रियान्वित कर सकते हैं.
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