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गौतम ने अपने खेत में धान और जौ लगाया था. गणेशजी ने अत्यन्त दुबली-पतली और कमज़ोर गाय का रूप धारण किया और धान के खेतों में जाकर चरने लगे.

उसी समय संयोगवश गौतम वहां पहुंच गए. उन्होंने खेत से मुट्ठी भर खर-पतवार उखाड़ा और उससे गाय को हांकने लगे. कोमल खर-पतवारों का स्पर्श होते ही वह गाय कांपती हुई धरती पर गिरी और मर गई.

वे दुष्ट ब्राह्मण और उनकी स्त्रियाँ छिपकर उक्त सारी घटनाएँ देख रही थीं. वे सभी बोल पड़े– गौतम ने गोवध कर डाला. सब जगह यह बात फैल गई कि गौतम ने गोवध किया है.

ईश्वर की इस लीला से दुखी गौतम को राह नहीं सूझ रही थी. आसपास बसे ऋषियों ने गौतम और अहिल्या को अपमानिता करना शुरू किया. उनपर पत्थर बरसाए गए.

गौतम ने उनसे गोहत्या के पाप से मुक्ति की राह पूछी तो उन्होंने असंभव जैसा उपाय बताया लेकिन गौतम ने महादेव की कृपा से उससे मुक्ति पाई. अगली कथा में बताएंगे कि महादेव ने क्या वरदान दिया और कैसे वह स्थान कल्याणकारी त्र्यंबकेश्वर तीर्थ बना.

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संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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