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सुतीक्ष्ण ने गुरू के चरणों में दंडवत करके विनम्र भाव से कहा- गुरुदेव ! मैं गुरुदक्षिणा देने आया हूं. सीताराम जी द्वार पर खड़े आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
अगस्त्यजी प्रसन्न थे कि शिष्य परीक्षा की कसौटी में खरा उतर गया. अगस्त्य सुतीक्ष्ण को साथ लेकर बाहर आए और श्री रामचन्द्रजी व सीता माता का स्वागत तथा पूजन किया.
अगस्त्य ने सुतीक्ष्ण को आशीष देते कहा- सुतीक्ष्ण जो दृढ़ता, तत्परता और समर्पित ह्रदय से गुरु आज्ञा-पालन में लग जाता है, उसका संकल्प पूरा करने के लिए स्वयं भगवान भी सहयोगी बन जाते हैं.
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्
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