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ब्रह्माजी बोले- भगवान के ध्यान करने योग्य रूपों के बारे में सुनो. ग्वाल बाल जैसा उनके वेश है, श्याम है शरीर, अवस्था किशोर है, धाम है कल्पवृक्ष. श्रीकृष्ण प्रकृति के तत्व के साथ हैं. गौ, पृथ्वी उन्हें सबसे प्रिय हैं.

ऋषियों ने आगे पूछा- क्या श्रीकृष्ण सिर्फ इसी रूप में हैं, या उनके अन्य स्वरूप भी हैं. हमें सबकुछ जानना है. प्रभु विस्तार से सबकुछ बताएं जो आपको ज्ञात है.

ब्रह्माजी बोले- उनके समस्त स्वरूप का थाह लगाना तो संसार में किसी के लिए भी संभव नहीं है. भक्तवत्सल भगवान किस रूप में भक्तों के लिए प्रकट हो जाएं, कौन बता सकता है. उन्हें तो जिस रूप में खोजोगे उस रूप में मिल जाएंगे.

ऋषियों ने पूछा- जिस रूप में खोजें उस रूप में मिल जाएंगे! यह तो बड़े कौतूहल का विषय हो गया. इसका क्या अर्थ लगाया जाए? क्या वह प्रतिदिऩ नया रूप धारण करते हैं, या नित्य नए अवतार ग्रहण करते हैं?

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ब्रह्माजी हंसने लगे. फिर रूककर बोले- जिसने संसार के समस्त आश्चर्य उत्पन्न किए हों, जो उन आश्चर्यों का निवारण कर रहे हों उनके स्वरूप के विषय में कौतूहल तो होगा ही. मैंने तो तुम्हें पहले ही कथा था कि इसे समझना इतना सरल नहीं. नित्य नए अवतार नहीं लेते पर जिस रूप में चाहोगे मिल जाएंगे.

ऋषियों ने फिर से प्रश्न कर दिया- आपकी बातों में कुछ भी स्पष्ट नहीं हो रहा. इसे सरलता से बताएं.

ब्रह्माजी ने कहा- उन्हें जिस रूप में खोजा जाता है उस रूप में मिल जाते हैं. संसार में उन्हें सभी ईश्वर के रूप में ही नहीं भजते. कोई उन्हें पुत्र रूप में भजता है. कोई उन्हें सखा रूप में देखता है, उन्हें मित्र समझकर चिंता बताता है. कोई श्रीकृष्ण को शिष्यरूप में तो कोई प्रेमी रूप में भजता-पूजता है. वह उसे उसी रूप में दर्शन दे देते हैं. जिसकी जैसी भावना हुई श्रीकृष्ण उसे उसी रूप में सहज दिख जाते हैं.

ऋषियों ने कहा- यह तो बड़े आश्चर्य की बात है. क्या इस प्रकार परमात्मा के विभिन्न रूपों में देखना का दोष नहीं होता?

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ब्रह्माजी ने कहा- तुम्हारा आश्चर्य बढ़ाने के लिए बता दूं कि श्रीकृष्ण जिस रूप में चाहो उसमें केवल दर्शन ही नहीं देते. वह तो उस रूप में भक्त के यहां वास तक करने लगते हैं. पृथ्वीलोक पर घूम-घूमकर पता करो उन्हें न जाने किस-किस रूप में लोग भज रहे हैं. तुम्हें घर-मंदिर में अनेक रूप दिख जाएंगे. तुम्हारे आश्चर्य का न अंत होगा न श्रीकृष्ण के स्वरूप का.

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