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श्रीकृष्ण संपूर्ण सोलह कलाओं वाले नारायण के अवतार. क्या इतने से ही भगवान श्रीकृष्ण की व्याख्या पूरी हो जाती है. पुराण कहते हैं श्रीकृष्ण रहस्य को बताने समझने के लिए करोड़ वर्ष भी कम हैं. तो फिर श्रीकृष्ण को मनुष्य छोटे से जीवनकाल में जाने कैसे?

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भगवान श्रीकृष्ण के किस स्वरूप का पूजन करें? यह प्रश्न ब्रह्माजी से पूछा गया. उन्होंने इसका सुंदर उत्तर भी दिया था. आज उसी को जानेंगे. बात भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप की है. तो इसे समझने के लिए आपको बहुत ध्यान से पढ़ना होगा. कथा-कहानी की तरह नहीं, किसी पढ़ाई के किताब की तरह धैर्य के साथ. अंत तक पढ़ना होगा. गंभीर बातें बच्चों की दवा की तरह दी जाती हैं. उन्हें बीच-बीच में इधर-उधर की बात सुनानी पड़ती है. आपने किया होगा ऐसा बच्चों के साथ. आज आपके साथ यही प्रयोग होगा.

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एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए. बहुत से लोगों के मन में एक प्रश्न रहता है-आखिर किसकी पूजा करें. आप कहते हैं सभी भगवान एक ही हैं. बस उनके स्वरूप अलग हैं तो फिर इतने स्वरूप में से किसकी पूजा करें. भगवान मानें किसे? महादेव को, जगदंबा को,श्रीकृष्ण को, श्रीराम को, नारायण को, गणेशजी को, सूर्य को इंद्र को.. किसे मानें.

जो सहजता से संभव हो वह पूजा है. जिसमें चित्त का शांति मिले वह परमात्मा हैं. आपने भागवतकथा सुनी हो तो याद होगा कि ब्रह्माजी भगवान की कितनी सुंदर परिभाषा देते हैं. भागवत महापुराण की कथा शृंखला मैंने प्रभु शरणम् ऐप्प में चलाई थी. यदि आप नहीं पढ़ पाए थे तो कोई बात नहीं. फिर से शुरू होने वाली है. आज ही आप प्रभु शरणम् ऐप्प डाउनलोड कर लें.

आप कहेंगे कि ऐप्प पर ही क्यों जोर देता हूं. कारण है- मैं टेक्निकल फील्ड का व्यक्ति नहीं हूं. वेबसाइट पर पोस्ट करने में तमाम झंझट हैं. ऐप्प पर मुझे सरल लगता है. लिखने के बाद पोस्ट करने में मुश्किल से पांच मिनट. यहां पोस्ट करने में एक घंटे लग जाते हैं. अब यह समय लिखने-पढ़ने में प्रयोग हो तो बेहतर है. तकनीकि झंझट में क्यों समय गंवाऊं.

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ऐप्प का लिंक ऊपर आपने देख लिया होगा. इसे पोस्ट के अंत में भी दे दूंगा. आप वहां से भी डाउनलोड कर सकते हैं.

अब मूल बात पर लौटते हैं- श्रीकृष्ण के किस स्वरूप की पूजा करें?

ब्रह्माजी भगवान को परिभाषित करते-करते भगवान में खो जाते हैं.  बड़ा सुंदर प्रसंग है. जो भगवान में ध्यान लगाएगा वह खो ही जाएगा. और जो न खो रहा हो वह ध्यान नहीं लगा रहा, टाइमपास कर रहा है. वैसे जरूरी नहीं कि एक बार ध्यान लग जाए. प्रयास करते रहने से धीरे-धीरे होने लगता है.

तुलसीदास जी कहते हैं न- तुलसी मेरे राम को रीझ भजो या खीझ, भौम पड़ा जामे सभी उल्टा सीधा बीज.

भगवान की भक्ति तो भूमि की तरह ऊर्वर खेत है. आप लगे रहिए. अंकुर निकलेंगे, फिर पौधा भी बनेगा, फल भी लगेंगे. तो ब्रह्माजी भगवान का चिंतन करते खो गए हैं. वह भगवान श्रीकृष्ण का वर्णन कर रहे हैं. ऐसा ही प्रसंग प्रश्न उपनिषद में आता है. भागवत वाला प्रसंग बाद में पहले उपनिषद वाले प्रसंग की बात करते हैं.

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एक बार की बात है बहुत सारे ब्रह्माजी के पास अपना एक प्रश्न लेकर पहुंचे. ब्रह्माजी की विधिवत स्तुति-पूजन के बाद ऋषिगण ने अपना प्रश्न रखा- हे ब्रह्मदेव हम भगवान के किस रूप को भजें जो सबसे सहज हो. जिसे श्रद्धा भाव से भी, सखा भाव से भी, बालभाव से भी, तारनहार से भी जैसे चाहे उस भाव से भजा जा सके और दोष भी न लगे?

हे परमपिता! मार्गदर्शन करें. हम भगवान किसे मानें, किसे भजें जिससे पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाए. परमात्मा को, देवता को या किसी अऩ्य शक्ति को.

ब्रह्माजी ने इस शंका का कैसा सुंदर निवारण दिया सुनिएगा. छोटा सा प्रसंग है पर ज्ञानवर्धक है.

ऋषियों ने ब्रह्माजी से पूछा- हमें किस देवता के तत्व को पूरा समझ लेने से संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हो सकता है. किसके द्वारा प्रेरित होकर संसार आवागमन के चक्र में पड़ा रहता है?

ब्रह्माजी ने कहा- स्वाहा की माया शक्ति से प्रेरित होकर ही जीव संसार में आवागमन के चक्र में पड़ा रहता है. (आवागमन का चक्र अर्थात जन्म लेना फिर मरना फिर जन्म लेना, विभिन्न योनियों का क्रम पूरा करना)  इसलिए हे ऋषियों जिन गुणों पर आप भगवान को भजना चाहते हैं उसे देखकर तो मैं आपको गोपीजनवल्लभ श्रीकृष्ण की बात कहूंगा. श्रीकृष्ण के तत्व को पूरा समझ लेने से भी संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हो सकता है.

ब्रह्माजी से यह सुनकर मुनियों ने पूछा- भगवन! श्रीकृष्ण कौन हैं? गोपीजनवल्लभ कौन हैं, स्वाहा कौन हैं? हमें इनके बारे में विस्तार से बताएं.

ब्रह्माजी बोले- जो पाप का हरण करते हैं वह कृष्ण हैं. गौ, भूमि और वेदवाणी के ज्ञाता और अविद्या कला के निवारक हैं गोपीजन वल्लभ. इनके नाम का जो ध्यान करता है वह अमृत स्वरूप को प्राप्त होता है.

वह हर रूप में हर स्वरूप में हैं इसलिए श्रीकृष्ण हैं. परमात्मा के जिस भी स्वरूप की उपासना करोगे वह अंततः उनतक पहुंच ही जाती है. इसलिए कोई भेद न रखो. श्रीकृष्ण परमात्मा के स्वरूप में भेद रखने वालों को पसंद नहीं करते.

मुनियों ने पूछा- भगवन! आपकी बात सत्य है पर हमें ज्ञान नहीं है. इस कारण हम पूछ रहे हैं. हम शंकावश नहीं  पूछ रहे, जिज्ञासावश पूछ रहे हैं. श्रीकृष्ण का ध्यान करने योग्य रूप कौन सा है? उनके नाम के अमृत का स्वाद लेने के लिए किस प्रकार से भजन करना चाहिए, हमें यह सब विस्तार से बताएं. श्रीकृष्ण तत्वज्ञान क्या है?

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