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आगंतुक शिवजी ने कहा- आप सब तपस्वीजन हैं. आपके यह आचरण शोभा नहीं देता. यदि मुझे ईश्वर ने ऐसा सुंदर शरीर ऐसी मधुर आवाज दी है तो इसमें मेरा क्या दोष? आपको तो इसके लिए अपने आराध्य महादेव को कोसना चाहिए. उन्होंने मुझमें इतना आकर्षण क्यों भरा? मैं आगंतुक हूं, अतिथि हूं. अतिथि का अपमान करने से आपका तप नष्ट होगा. फिर महादेव कैसे प्रसन्न होंगे और आपको कैसे उनके दर्शन होंगे. आप सब अपने संचित पुण्य नष्ट कर रहे हैं.
यह सुनना था कि युवा मुनिगण बिफर गए. एक तो हमारी स्त्रियों को मोहित कर रखा है ऊपर से ज्ञान दे रहा है. मूर्ख मदारी, मायावी हमें ज्ञान देगा! कुछ ने तो आवेश में डंडे उठा लिए और मारने दौड़े.
शिवजी ने फिर से चेताया- आप आगंतुक का अपमान कर रहे हैं. जिस स्थान पर अतिथि का सत्कार नहीं होता वहां शिवजी का कभी प्रवेश नहीं होता. आप ऐसा न करें.
उनकी बात किसी को न सुननी थी सो न सुनी. वे मारने को उतारू ही थे. शिवजी ने समझ लिया कि अभी भक्तों की भक्ति पक्की नहीं हुई है. अभी इनमें अभिमान बाकी है. शिवजी उसी क्षण अंतर्धान हो गए. अचानक गायब होते देखा तो मुनि डर गए. कहीं यह कोई मायावी असुर तो नहीं था. क्या भरोसा एक दिन उनकी स्त्रियां ले ही जाए. इसका उपाय करना होगा.
मुनिगण इस अद्भुत घटना को समझने के लिए ब्रह्माजी के पास पहुंचे. उन्हें दारूवन की सारी कहानी सुनाई. ब्रह्माजी ने ध्यान लगाया और सारी बात समझकर बोले- तुम सबने अंजाने में ही उत्तम निधि गंवा दी. तुम लोग निसंदेह भाग्यहीन हो. भगवान शिव तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे. वह देखना चाह रहे थे कि शिवजी की कृपा के योग्य तुम्हारा सिर्फ तप हुआ है या तुम सब भाव से भी निष्काम हो चुके हो?
ब्रह्माजी बोले- गृहस्थों को अतिथियों की निंदा नहीं करनी चाहिए. अतिथि चाहे कुरुप हो, मलिन या अविवेकी ही क्यों न हो. पूर्व में सुदर्शन नामक ब्राह्मण ने अतिथि सत्कार से ही काल तक को जीत लिया था. तुमने अविवेक का परिचय दिया.
मुनिजन उदास हो गए.
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Mata parvati ka janam kon se place per hua tha plz rep if any were know
Nice story. I esp liked what Sudarshan said. Jai Bholenath