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हरिद्वार के कनखल में एक ब्राह्मण ने तप करके तीन पुत्र प्राप्त किये. वे तीनों पुत्र माता-पिता के मरने के बाद पढाई करने राजगृह पहुंचे. पढाई करके वे दक्षिण की ओर चल पड़े.
यहां उन्होंने कुमार कार्तिकेय का दर्शन किया. समुद्र तट पर बने चिंचनी नगर पहुंचे और वहां भोजिक नाम के एक ब्राह्मण के घर रहने लगे. उस ब्राह्मण के तीन कन्याएँ थीं.
उसने इन तीनों का विवाह उनसे कर दिया और खुद हरिद्वार की ओर चला गया. वे तीनों अपने श्वसुर के घर में रहने लगे. कुछ समय बाद भीषण अकाल पड़ा. तीनों ब्राह्मण अपनी पत्नियों को छोड़ कर भाग गए.
पत्नियाँ घर में अकेली रह गयी. उनमें से मंझली बहन गर्भवती थी. वे तीनों बहनें अपने पिता के एक मित्र यज्ञदत्त के घर चली आई तथा संकट का यह जीवन काल अपने अपने पतियों का ध्यान करती हुई बिताने लगीं.
कुछ समय बीतने पर मंझली बहिन ने एक पुत्र को जन्म दिया. तीनों बहनें इस नवजात बच्चे के प्रति अत्यधिक ममता से भर उठीं हैं और अपना स्नेह उस पर उड़ेल रही हैं.
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