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लेकिन किरात के शरीर से टकराते ही पेड़ किसी तिनके की भांति टूटकर नीचे जा गिरा. किरात ने अर्जुन को उठाकर धरती पर पटक दिया. बेबस होकर अर्जुन ने रेत का शिवलिंग बनाया और शिवलिंग पर एक माला चढाकर प्रार्थना करने लगे.

उनके शरीर में नई शक्ति आ गई. उन्होंने उठकर फिर से किरात को ललकारा लेकिन जैसे ही नजर किरात के गले में पड़ी फूलमाला पर पड़ी, वह स्तब्ध रह गए.

अर्जुन समझ गए कि किरात के भेष में स्वयं महादेव ही उनके सामने ख़ड़े हैं. अर्जुन किरात के चरणों में गिर पड़े, रुंधे गले से बोले- मेरे प्रभु मुझे क्षमा कर दें. मैंने गर्व किया था.

महादेव असली रूप में प्रकट हुए और बोले- मैं तुम्हारी भक्ति और साहस से प्रसन्न हूं. मैं तुम्हें पाशुपत अस्त्र का ज्ञान दूंगा. संकट के समय वह तुम्हारे काम आएगा. शिव का वचन सत्य हुआ.

महाभारत के युद्ध में अर्जुन अपने चिरशत्रु कर्ण का वध पाशुपत अस्त्र से ही करने में सफल हुए थे.

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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