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शिवजी वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए. बहुत दिन बीतने के बाद एक दिन अंजना जंगल में भगवान शिव की आराधना कर रही थीं, उसी समय कहीं दूर महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे.
अग्निदेव ने शृगी ऋषि के माध्यम से उन्हें दैवीय ‘पायस’ दिया जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान पक्षी उस पायस की कटोरी पर आ बैठा, हालांकि उसने पायस जूठा नहीं किया और तुरंत उड़ गया पर थोड़ा सा पायस उसके पंजों में लग गया.
वह पक्षी उड़ा और उस जंगल में जा पहुंचा जहां तपस्या में लीन अंजना बैठे थीं. आरधना के अंत में अंजना ने प्रभु के आगे हाथ फैलाये ही थे कि पक्षी के पंजों में लगा पायस उसमें टपक गया.
अंजना ने भगवान से मांगे जाते समय गिरे इस पायस को शिव का प्रसाद समझ कर ग्रहण कर लिया. कुछ ही समय बाद उन्होंने वानर मुख वाले एक स्वस्थ बालक को जन्म दिया जो हनुमान कहलाए.
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश
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