हमारा फेसबुक पेज लाईक करें.[fblike]

भीलनी ने कहा− प्राणनाथ! अतिथि को वापस लौटाने से हमारे गृहस्थ धर्म की हानि होगी. आप स्वामीजी के साथ सुखपूर्वक घर के भीतर रहिए. मैं अस्त्र शस्त्र लेकर बाहर खड़ी सेवा करुंगी.

पत्नी की बात सुनकर भील ने स्त्री को बाहर रखना उचित न समझा. उसने स्वयं बाहर खड़े रहने का निर्णय लिया. स्वामीजी को घर के भीतर ठहराकर वह स्वयं बाहर खड़ा होकर पहरा देने लगा.

रात में हिंसक पशुओं ने झुंड बनाकर धावा बोला. वे आहुक को मारकर खा गए. इससे संन्यासी को बड़ा दुख हुआ.

[irp posts=”5853″ name=”शिवलिंग या शिव की मूर्ति, पूजा के लिए कौन है श्रेष्ठ?”]

संन्यासी को दुखी देख भीलनी धैर्यपूर्वक बोली− यतिराज! आप दुख न करें. भीलराज ने अपने कर्तव्य का पालन करने में बलिदान दिया है. वह धन्य हो गए. मैं चिता की आग में जलकर अपने पति का अनुसरण करूंगी. आप प्रसन्नतापूर्वक मेरे लिए चिता तैयार कर दें.

संन्यासी ने उस भीलनी के लिए चिता की व्यवस्था कर दी. भीलनी ने अपने पातिव्रत्य धर्म का पालन करते हुए चिता में प्रवेश किया. उसी समय भगवान शंकर अपने वास्तविक स्वरूप में भीलनी के समक्ष प्रकट हो गए.

आप प्रभु शरणम् से नहीं जुड़ें हैं? आप सच में कुछ मिस कर रहे हैं. एकबार देखिए तो सही, प्रभु शरणम् फ्री है. ट्राई करके देखिए.

Android ऐप्प के लिए यहां क्लिक करें

उन्होंने पति-पत्नी दोनों के धर्म के प्रति अडिग रहने के भाव की प्रशंसा की. शिवजी ने भीलनी से कहा कि वह उसके पति के प्राण लौटा देंगे. पर भीलनी को यह स्वीकार न था. उसने कहा कि पति के सम्मुख आपका भेद प्रकट नहीं हुआ था. इसमें उनकी सहमति थी. अतः मैं इसे स्वीकार नहीं सकती.

शिवजी आहुका के ऐसे धर्मभाव जानकर अभिभूत हो गए.

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.