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भीष्म पितामह शरशय्या पर पड़े प्राण त्यागने के लिए शुक्लपक्ष के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे. भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर युधिष्ठिर उनसे प्रतिदिन नीति ज्ञान लेते थे. द्रौपदी कभी नहीं जाती थीं.
इससे भीष्म के मन में पीड़ा थी. श्रीकृष्ण ने भांप लिया था. उन्होंने युधिष्ठिर से कहा- अंतकाल की प्रतीक्षा में साधनारत पूर्वज से सपरिवार मिलना चाहिए. परिवार पत्नी के बिना पूर्ण नहीं है.
इशारा समझकर युधिष्ठिर जिद करके द्रौपदी को भी साथ ले गए. पितामह उन्हें नीति ज्ञान देने लगे. द्रौपदी कुंठित होकर चुपचाप सुन रही थी. अचानक द्रोपदी को हंसी आ गई.
भीष्म ने कहा- पुत्री तुम्हारे हंसने का कारण मैं जानता हूं. द्रोपदी सकुचाई को भीष्म ने कहा- पुत्री तुम अपने मन की दुविधा पूछ ही लो. मुझे शांति मिलेगी.
द्रोपदी ने कहा- स्वयं भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भीष्म के समान नीति का ज्ञाता दूसरा कोई नहीं किंतु आपका ज्ञान कहां लुप्त हो गया था जब पुत्रवधू आपके सामने निवस्त्र की जा रही थी?
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