रुद्राक्ष को साक्षात महादेव का प्रतीकस्वरूप माना गया है. शरीर पर रुद्राक्ष और मस्तक पर भस्म का त्रिपुंड धारण करने वाला चांडाल भी सबके द्वारा पूज्य हो जाता है. शिवपुराण में रुद्राक्ष के प्रकार, उसे धारण करने का मंत्र स्वयं शिवजी ने बताया है.

धार्मिक व प्रेरक कथाओं के लिए प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े, लिंक-

[sc:fb]

प्रभु शरणं के पोस्ट की सूचना  पाना चाहते हैं तो  नोटिफिकेशन को  सब्सक्राइव कर लें. जब आप वेबसाइट को ओपन करते हैं तब आपको एक मैसेज लिखकर आता है कि क्या आप पोस्ट की सूचना चाहते हैं… वहां हां को क्लिक कर दें. कोई भी नया पोस्ट आने पर आपको सबसे पहले सूचना मिल जाएगी.

रुद्राक्ष की उत्पत्ति को लेकर एक पौराणिक कथा आती है. कहते हैं रूद्र से मिलने एक बार देवतागण आए. वे असुरों के अत्याचार से त्रस्त थे और मारे-मारे फिर रहे थे. महादेव ने सारी बात सुनी और ध्यान लगाया. उन्हें देवताओं की जो स्थिति दिखी उससे द्रवित हो गए. महादेव को इस बात का दुख था कि असुरों में देवों को सताने की शक्ति स्वयं उनके वरदान से ही आ गई है. रूद्र द्रवित हुए तो उनकी आंखों से जल की बूंद धरती पर गिरी. उसने तत्काल वृक्ष का रूप धारण कर लिया.

ब्रह्माजी ने तत्काल उसे संभालकर अपने कमंडलु में रख लिया. यह देखकर शिवजी को बड़ी प्रसन्नता हुई कि ब्रह्माजी ने उनके आंखों से बहे जल का इतना मान किया. शिवजी ने कहा कि इस बीज से निकले फल को मेरे समान ही समझना. रूद्र के अक्ष यानी आंखों से उपजे होने के कारण ब्रह्मा ने इसे रुद्राक्ष कहा.

रुद्राक्ष में जो फल लगता है उसे खाया नहीं जाता क्योंकि वह रूद्रस्वरूप है. उसे सुखाकर उससे ही बनता है रुद्राक्ष.  रुद्राक्ष को विधि-विधान से धारण करने वाले व्यक्ति के साथ शिवजी का अंश सदा विद्यमान रहता है. वह शिवकृपा की छाया में आनंदित रहता है, सुख-समृद्धि सहज प्राप्त करता है. रूद्राक्ष को धारण करने के कुछ नियम बताए गए हैं. शिवपुराण में स्वयं शिवजी पार्वतीजी को रुद्राक्ष के बारे में बताते हैं.

पार्वतीजी ने भोलेनाथ से रुद्राक्ष का परिचय देने को कहा. शिवजी ने रुद्राक्ष के तेरह प्रकारों का परिचय देते हुए कहा-

रुद्राक्षाः विविधाः प्रोक्तास्तेषां भेदान् वदाम्यहम्। शृणु पार्वति सद् भक्तया भुक्तिमुक्तिफलप्रदान्।।

[irp posts=”6986″ name=”पंचाक्षर मंत्र ऊँ नमः शिवाय कैसे हुआ सबसे प्रभावशाली शिवमंत्र”]

शिवजी कहते हैं रुद्राक्ष के चौदह भेद हैंः

  1. एकमुख को साक्षात शिव का रूप समझना चाहिए. उसके तो दर्शन होने से ही दुरितों का नाश होता है.
  2. द्विमुखी का नाम देवदेवेश है, जिसके दर्शन से सभी साधन सुलभ हो जाते हैं.
  3. चतुर्मुखी को ब्रह्माजी का प्रतीक समझना चाहिए जिसके दर्शन से चौतरफा फल की प्राप्ति होती है.
  4. पंचमुखी का नाम कालाग्नि है जो पंचानन शिव का प्रतीक है.
  5. षड्मुखी कार्तिकेयजी का प्रतीक है और इसे दाहिनी भुजा में धारण करना चाहिए.
  6. सप्तमुखी का नाम अनंगी है और यह कामदाहक शिव का प्रतीक है.
  7. अष्टमुखी का नाम वसुमूर्ति है और यह भैरवजी का प्रतीक है.
  8. नवमुखी कपिलमुनि का प्रतीक है.
  9. दसमुखी स्वयं भगवान नारायण का प्रतीक है.
  10. एकादशमुखी भगवान रूद्र का प्रतीक है.
  11. द्वादशमुखी यानी बारह मुख वाला रुद्राक्ष भगवान सूर्य का प्रतीक है.
  12. त्रयोदशमुखी यानी 13 मुख वाला विश्वदेव का प्रतीक है.
  13. चतुर्दशमुखी यानी चौदह मुखी परमशिव का प्रतीक है.

शिवजी बोले- देवी रुद्राक्ष को साक्षात मेरा अंश समझो. इसे विधि-विधान से धारण करना चाहिए.

महादेवी ने भगवान भोलेनाथ से रुद्राक्ष धारण करने के विधि-विधान के बारे में विस्तार से पूछा. शिवपुराण, लिंगमहापुराण, कालिकापुराण, महाकाल संहिता, मन्त्रमहार्णव, निर्णय सिन्धु, बृहज्जाबालोपनिषद् में रुद्राक्ष के धारण करने संबंधी विधि-विधानों की चर्चा है.  रुद्राक्ष को तब तक रूद्र का स्वरूप नहीं मानना चाहिए जब तक उसे सिद्ध न कर लिया जाए. सिद्ध करने के बाद ही रुद्राक्ष फलदायी होता है. इसे रुद्राक्ष की प्राण-प्रतिष्ठा भी कहा जाता है.

कैसे होती है रुद्राक्ष की प्राण-प्रतिष्ठा. जानिए अगले पेज पर.

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

2 COMMENTS

  1. जय श्री राम ॐ नमः शिवाय
    महाशय प्रभु शरणम् मै फ़ोन पे इनस्टॉल कर रखा हु आप का धर्म के परती जागरूकता फैलाना एक सराहनीय कदम है मै आप के इस कदम को नमन करता हु
    मै इसे लैपटॉप पे इनस्टॉल करना चाहता हु क्या हो जायेगा .

    • प्रशंसा के लिए आभार. लैपटॉप पर नहीं होगा. मोबाइल में या टैब में होगा

Leave a Reply to अखिलेश्वर शर्मा Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here