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रावण ने रंभा से पूछा कि आखिर उसने उसे पिता क्यों कहा, तो रंभा बोली- मैं आपके बड़े भाई कुबेर के पुत्र नलकूबर से प्रेम करती हूं. अभी उनके पास ही जा रही हूं. इस नाते आप मेरे ससुर हुए सो आपको पिता कहा.

रावण ने कहा- अप्सराएं जब किसी की पत्नी ही नहीं होतीं तो ससुर का प्रश्न कहां से आया. राक्षस स्वभाव का परिचय देते हुए उसने रंभा के साथ व्याभिचार किया.

रंभा फूट-फूटकर रोने लगी. उसकी आवाज में इतनी करुणा थी कि उसे अलकापुरी तक सुना जा सकता था. नलकूबर आए. रंभा ने सारी बात बताई.

क्रोध से कांपते नलकूबर ने अपने सभी पुण्यों का आह्वान कर हाथ में जल लिया और रावण को शाप दिया- रंभा द्वारा ससुर कहे जाने के बाद भी रावण ने उसके साथ अनाचार किया.

मेरा शाप है कि आज के बाद यदि उसने किसी परस्त्री के साथ उसकी सहमति के बिना अनाचार की कोशिश की तो उसका सिर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा.

रावण ज्ञानी होने के बावजूद राक्षसी प्रवृति का होने के कारण स्त्रियों के मान की रक्षा नहीं करता था. इस शाप के बाद उसने स्त्रियों के साथ अनाचार करना छोड़ा.

रावण जब माता सीता को लंका ले आया और उनके अलौकिक सौंदर्य को देखकर आसक्त हो उठा तो मंदोदरी ने उसे शाप की बात याद दिलाई.

डर के कारण रावण ने देवी को महल की बजाय महल के सामने स्थित अशोक वाटिका में रखा जहां से वह उन्हें देख सके.

यह कथा रामायण के अलावा कई और स्थानों में देखने को मिलती है.

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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