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मधु के महल में रहते-रहते कुंभनिसी को उससे प्रेम हो गया. उसने मधु को पति स्वीकार लिया था. रावण ने चढ़ाई की तो कुंभनिसी को मधु के प्राणों का भय हुआ.

वह रावण के पास आई. उसने रावण से कहा कि मधु को वह अपना पति मान चुकी है इसलिए बहन के सुहाग की रक्षा करे. उसने मधु को क्षमा कर दिया.

रावण युद्ध के लिए तैयार हो निकला था. मधु के साथ युद्ध टल गया पर राक्षसी प्रवृति हिंसा के लिए उसका रही थी. उसकी युद्ध की बड़ी इच्छा हो रही थी.

रावण को विचार आया कि जब युद्ध की तैयारी हो चुकी है तो बिना युद्ध के लंका लौटने से बेहतर है कि इंद्र के साथ युद्ध कर लिया जाए. वह इंद्र से युद्ध करने चला.

रास्ते में रावण की सेना ने कैलाश पर पड़ाव डाला. रात में रावण की नींद अचानक किसी के पायल की आवाज से खुली.

उसने देखा कि स्वर्गलोक की अप्सरा रंभा बन संवरकर कुबेर की नगरी अलकापुरी की ओर जा रही है.

रावण उस पर रीझ गया और उससे अपने प्रेम का इजहार किया. रंभा ने कहा- आप मेरे पिता समान लगेंगे. आपके लिए ऐसी बात शोभा नहीं देती.

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