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श्री भगवान बोले- बोपदेव! संसार में यह रहस्य शुकदेव के अतिरिक्त किसी और को ज्ञात नहीं. शुकदेव ने भी वह कथा दैवयोग से महादेवजी के मुख से सुन ली थी किंतु में तुम पर प्रसन्न हूं. इसलिए इसे सुनाउंगा.

श्रीहरि सुनाने लगे- दम्भ और पाखण्ड से भरे बौद्धों का प्रभुत्व प्रगति पर था. ऐसी परिस्थिति में भगवान शंकर माता पार्वती के साथ काशी में उत्तम भूमि देखकर वहां स्थित हो गए

उसी समय भगवान् शंकर ने किसी को आनंदपूर्वक प्रणाम करते हुए कहा- हे सच्चिदानन्द ! हे जगत को आनंद देने वाले ! आपकी जय हो. यह सुनकर माता पार्वती को अचरज हुआ.

कौतूहल दूर करने के लिए उन्होंने भगवान् शंकर से पूछा –आपके समान दूसरा अन्य देवता कौन है जिसे आपने इस प्रकार सम्मानपूर्वक प्रणाम किया.

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