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महाभारत युद्ध की समाप्ति पर भीमसेन को अभिमान हो गया कि युद्ध केवल उनके पराक्रम से जीता गया है. जबकि धनुर्धारी अर्जुन को लगता था कि महाभारत में पांडवों की जीत उनके पराक्रम से संभव हुई है. विवाद बढ़ता देख अर्जुन ने एक रास्ता सुझाया. उन्होंने कहा कि युद्ध के साक्षी वीर बर्बरीक के शीश से पूछा जाए कि उन्होंने इस युद्ध में किसका पराक्रम देखा?

पांडव वीर श्रीकृष्ण के साथ वीर बर्बरीक के शीश के पास गए. उनके सामने अपनी शंका रखी. बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मुझे इस युद्ध में केवल और केवल एक योद्धा नजर आए जो सबके बदले युद्ध कर रहे थे. वह थे भगवान श्रीकृष्ण. कुरुक्षेत्र में सर्वत्र नारायण का सुदर्शन चक्र ही चलता रहा. यह युद्ध उनकी नीति के कारण ही जीता गया.

बर्बरीक द्वारा ऐसा कहते ही समस्त नभ मंडल उद्भाषित हो उठा. देवगणों ने आकाश से देवस्वरुप शीश पर पुष्पवर्षा की. भगवान श्रीकृष्ण ने पुनः वीर बर्बरीक के शीश को प्रणाम करते हुए कहा- “हे बर्बरीक आप कलि काल में सर्वत्र पूजित होकर अपने भक्तो के अभीष्ट कार्य पूर्ण करेंगे. आपको इस क्षेत्र का त्याग नहीं करना चाहिए. आप युद्धभूमि में हम सबसे हुए अपराधों के लिए हमें क्षमा कीजिए.”

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