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नारायण ने कहा- सभी लोकों में सब जानते हैं कि भगवान शंकर को सर्वाधिक प्रिय नारायण हैं पर आज का यह दृश्य देखकर मुझे संदेह-सा हो रहा है. आपको संभवतः शिवजी मुझसे अधिक प्रेम करते हैं.
श्रीहरि भी उलाहने से भरी बातें कहकर हनुमानजी से विनोद कर रहे थे और अपनी लीला भी कर रहे थे. बात शिवजी के कानों में पड़ गई तो उनकी नींद खुल गई.
शिवजी बोले- हे नारायण आप यह क्या कह रहे हैं. आप तो जानते ही हैं मुझे आप सर्वाधिक प्रिय हैं. सभी लोकों में विदित इस सत्य में कोई परिवर्तन नहीं आया है.
उधर कैलाश पर भगवती पार्वतीजी सोचने लगीं कि भोज के लिए गए थे पर इतना विलंब क्यों हुआ. वह किंचित रुष्ट हो शिवजी को ढूंढते गौतम के आश्रम आ पहुंची.
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यहां पता चला कि उनके स्वामी, विष्णुजी और ब्रह्माजी महर्षि गौतम का आतिथ्य सत्कार ले रहे हैं. गौतम ने जगदंबा से भी भोजन का आग्रह किया तो उन्होंने भी स्वीकार कर भोजन लिया.
भोजन के बाद हंसी-ठिठोली के क्रम में विनोदवश पार्वतीजी ने शिवजी की वेश-भूषा पर थोड़ी हंसी की. उन्होंने बहुत सी ऐसी उलाहने भरी बातें कहीं जो अक्सर पति-पत्नी प्रेमवश आपस में कह ही देते हैं. पर माता कुछ बातें ऐसी भी कह गईं जो सबके सम्मुख वहां नहीं कहनी चाहिए थीं.
काफी समय से चुपचाप बैठे यह सब सुनते रहे भगवान भगवान विष्णु अचानक अपने नाखूनों से अपना ही सिर फाड़ने लगे. उनके मस्तक से रक्त की धार फूट पड़ी.
सब सकपका गए और पूछा- प्रभो यह क्या अनर्थ किया?
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Hariom
Very nicely compiled I am also a lord shiv bhakt
अति सुंदर प्रसंग।हरिहर भगवान की जय
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