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कार्तिकेय ने कहा– पिताजी! मैं अपने लक्षण शास्त्र के अनुसार पुरुषों के लक्षण बनाने के उपरांत स्त्रियों के लक्षण बनाने में मग्न था. इसी बीच गणेशजी ने बिना कार्य के गंभीरता समझे बड़ा विघ्न किया.

पिताजी इस विघ्न के चलते मेरा ध्यान भंग हो गया. मेरा क्रम टूट गया. मैं स्त्रियों के लक्षण चाहकर भी नहीं बना सका. मेरा सब प्रयास निष्फल रहा. इस कारण मुझे क्रोध हो आया.

महादेवजी ने कार्तिकेय से उनका पूरा दुख सुना और गणेशजी के प्रति उनके भीषण क्रोध का कारण समझा. महादेवजी ने किसी तरह कार्तिकेयजी को समझा बुझाकर उनका क्रोध शांत किया और फिर मुस्कारने लगे.

हंसते हुए महादेवजी ने उनसे पूछा- पुत्र! तुमने बताया कि तुमने पुरुष के लक्षणों को समझकर उसे लिख लिया है. स्त्री के लक्षण लिखने का कार्य अधूरा रह गया. अच्छा बताओ, मुझमें पुरुष के कौन-से लक्षण हैं?

कार्तिकेय ने कहा– पिताश्री! आप में तो ऐसे अद्भुत पुरुष के लक्षण हैं कि संसार भर में आप कपाली के नाम से प्रसिद्ध होंगे. पुत्र का यह वचन सुनकर अब महादेवजी को क्रोध आ गया. उन्होंने कार्तिकेय के उस लक्षण-ग्रन्थ को उठाकर समुद्र में फेंक दिया.

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