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बाहर खडे कवि ने सुना तो रोने लगा ओर मंत्री के सामने आकर पैर पकड लिए. आज के बाद मैं सिर्फ ईश्वर की महिमा गाऊंगा. आपने बड़े अपराध से मुझे बचा लिया.

ईश्वर की प्रशंसा में यदि समर्पित हैं तो आपकी कला की भी एक न एक दिन पहचान होगी और सम्मान भी मिलेगा. हो सकता है उस सम्मान में विलंब हो जाए पर वही स्थाई होगा. राजा के संरक्षण का सम्मान स्थाई कैसे होगा क्योंकि पृथ्वी की सत्ता बदलती रहती है, ईश्वर की नहीं.

तुलसीदासजी भी कहते हैं-

“जो नहीं करइ राम गुन गाना,
जिस सो दादुर जीभ समाना”

यानी जिस जीभ से ईश्वर की प्रशंसा नहीं हो रही वह जीभ तो मेंढक की जीभ जैसी ही है. मेढक उसका प्रयोग सिर्फ शिकार के लिए करता है. जिन पर माता सरस्वती की कृपा है क्या वे आज सही राह पर हैं.

जूते लगाने का अर्थ यह कतई नहीं कि उन्हें जूते से सचमुच पीट दिया जाए, यह तो और बड़ा पाप हो जाएगा. उन्हें मार्ग पर लाने के विनम्र और संयत राह चाहिए. आशा है आपको यह पोस्ट ज्ञानवर्धक लगी होगी.

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2 COMMENTS

  1. Great knowledge able informative and true

    Messages ,

    We thanks you .

    राधे राधे जी

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