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मकड़ी का मजाक उड़ाते चिड़िया बोली- अरे मकड़ी , तू भी कितनी बेवकूफ है. यहां खिड़की पर तेज हवा चलती है, जाला ही उड़ जाएगा. फिर कैसे फसेंगे कीड़े इसमें.

मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ. उसने वह जाला भी अधूरा छोड़ने का मन बना लिया और नया जगह तलाशने लगी.

काफी समय बीत चुका था. अब उसे भूख भी लगने लगी थी. उसे एक आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसमें जाला बुनना शुरू किया.

जाला अभी थोड़ा सा ही बुना था कि उसे एक काक्रोच नजर आया. काक्रोच जाले को अचरज भरी नजरों से देख रहा था. मकड़ी ने पूछा- इस तरह क्यों देख रहे हो?

काक्रोच बोला- अरे यहां कहां जाला बुनने चली आयी. ये तो बेकार आलमारी है. अभी यह यहां पड़ी है कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जायेगा फिर तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी.

मकड़ी को बात जंची उसने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा. बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी. उसमें जाला बुनने की ताकत ही नहीं बची थी.

भूख की वजह से वह परेशान थी. उसे पछतावा हो रहा थी कि अगर कुछ दिनों पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता. अफसोस में वह बैठी रही.

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