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योगी चलने हुआ तो राजा ने उसे रोक लिया और कहा आप ही राजपुरुष घोषित होने योग्य हैं. योगी ने तो संतोष साध रखा था. इसलिए उसने कहा- यह पद मेरे किसी उपयोग का ही नहीं है.

राजा ने कहा- इसीलिए आपको राजपुरुष बनाना चाहता हूं. राजपुरुष को कई विशेष अधिकार होते हैं. अन्य राज्यों जाने पर भी उसे विशेष अधिकार मिलते हैं. जिसे पद की लालसा ही नहीं वह पद का दुरुपयोग कर ही नहीं सकता.

राजा ने योगी को मना लिया और राजपुरुष घोषित किया. संतोषम् परमं सुखम्. संतोष अनमोल है. कुछ पा लेने की इच्छा, सबकुछ पा लेने की इच्छा में बदल जाती है और ऐसा अंतोष पनपता है कि इंसान बहुत कुछ पाकर भी सबकुछ से हीन ही समझता रहता है.

कुछ पाने की लालसा से मुक्त व्यक्ति के पास कुछ भी न होते हुए ऐसा आभास होता है कि उसके पास कोई कमी नहीं है. जो प्राप्त है वह पर्याप्त है के भाव में वह मानसिक शांति में रहता है.

संकलनः बीर सिंह
संपादनः प्रभु शरणम्

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