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बड़ा शेर उसे घसीटता गया नदी के किनारे ले गया. दोनों ने नदी में झांका. बूढ़ा सिंह बोला- नदी के पानी में अपना चेहरा देख और पहचान. उसने देखा तो पाया कि जिससे जीवन की भीख मांग रहा है वह तो उसके ही जैसा है.
उसे बोध हुआ कि मैं तो मैं भेड़ नहीं हूं. मैं तो इस सिंह से भी ज्यादा बलशाली और तगड़ा हूं. उसका आत्म अभिमान जागा. आत्मबल से भऱकर उसने भीषण गर्जना की.
सिंहनाद था वह. ऐसी गर्जना उठी उसके भीतर से कि उससे पहाड़ कांप गए. बूढ़ा सिंह भी कांप गया. उसने कहा- अरे! इतने जोर से दहाड़ता है? युवा शेर बोला- उसने जन्म से कभी दहाड़ा ही नहीं. बड़ी कृपा तुम्हारी जो मुझे जगा दिया.
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