भागवत कथाओं में अभी श्रीकृष्ण की बाल लीला का प्रसंग चल रहा है. अभी तक हमने प्रभु द्वारा पूतना, तृणावर्त, वत्सासुर, नलकूबर-मणिग्रीव और बकासुर के उद्धार की चर्चा की. आज आपके लिए अघासुर उद्धार का प्रसंग लेकर आया हूं.

भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल-बालों के साथ गाएं चराने को वन में कुछ सुबह ही निकल गए. वन में ही कलेऊ का कार्यक्रम बना. सभी सहर्ष तैयार हो गए. अपने-अपने पशु हांकते सभी वन के काफी भीतर प्रवेश कर गए.

पूतना और बकासुर का छोटा भाई अघासुर वन में मौके की ताक में बैठा था. उसके मन में भाई-बहन के संहार के प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी. कंस ने भी उसे खूब उसकाया इसलिए वह श्रीकृष्ण के वध का अवसर देख रहा था.

अघासुर का शरीर इतना विशाल और स्वभाव इतना क्रूर था कि उससे ऋषि-मुनि और देवता भी भयभीत रहते थे. सभी उसकी मृत्यु के अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे. श्रीकृष्ण को मारने के लिए अघासुर ने अजगर का रूप धारण कर लिया.

उसने अपना शरीर एक योजन लम्बे पर्वत के समान विशाल बनाया और मार्ग में लेट गया. अघासुर का यह रूप देखकर बालकों को भ्रम हुआ कि शायद यह भी वृंदावन की कोई सुंदर वस्तु है.

उसका मुंह किसी गुफा की तरह दिखता था. बाल-ग्वाल उसे समझ न सके और कौतुकवश उसे देखने लगे. अघासुर की जीभ उन्हें लाल रंग की सुंदर राह दिखाई देती थी. उन्हें इस पर चलने की इच्छा हुई.

हालांकि कुछ बच्चों के मन में भय भी हुआ कि कहीं यह कोई माया न हो जो उनका अहित करने आई हो लेकिन सभी कहने लगे कि कन्हैया के होते क्या डरना. जब उसने उतने विशाल बक को चीर दिया तो ऐसी छोटी-मोटी बाधाएं क्या हैं!

बात सही भी थी. जब स्वयं प्रभु सखा रूप में साथ हों तो भय की किया बात. प्रभु ने भी वह बात सुनी. वह तो समझ गए थे कि उनके साथी काल के मुख में प्रवेश कर रहे हैं लेकिन जब आस्था पक्की हो तो प्रभु को उसकी लाज भी रखनी पड़ती हैं.

उन्होंने मित्रों को रोका नहीं. ग्वाल-बाल भीतर गए तो अजगर के सांस से उन्हें तेज गर्मी महससू होने लगी. वह सांस लेता तो बच्चे भरभराकर गिरने लगते. अघासुर ने उन्हें अभी तक निगला नहीं. वह तो श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा कर रहा था.

अघासुर बछड़ों और ग्वालबालों के सहित भगवान श्रीकृष्ण को अपने जबड़ों से चबाकर चूर-चूर कर डालना चाहता था परन्तु उसी समय श्रीकृष्ण ने अपने शरीर को बड़ी फुर्ती से विशाल करने लगे.

प्रभु आकार बढ़ाने लगे तो उसकी सांस रूक गई. गला फटने ले प्राण निकल गए. इस प्रकार सारे बाल-ग्वाल और गोधन भी सकुशल ही अजगर के मुंह से बाहर निकल आए. अघासुर का शरीर एक प्रकाश पुंज बना और प्रभु में विलीन हो गया.

कन्हैया ने एक बार फिर सबके प्राण बचा लिए. सब मिलकर कान्हा की जय-जयकार करने लगे. पूर्व जन्म में अघासुर शंख का पुत्र था. उसका नाम था अघ. अघ कामदेव के जैसा सुंदर था. जिसका उसे बड़ा अभिमान हो गया था.

अष्टाव्रक मुनि का शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा-मेढ़ा था इसलिए वह अत्यंत कुरुप दिखते थे. अघ एक दिन मलयाचल पर्वत पर घूम रहा उसकी भेंट अष्टावक्र से हो गई. अघ ने उनका बड़ा उपहास किया.

अष्टाव्रक स्वभाव से क्रोधी नहीं थे और अपमान से उन्हें क्रोध आता नहीं था. वह स्वयं अघ की बातों पर हंसते रहे और उसे समझाने का प्रयत्न करते रहे लेकिन अभिमानवश उसे कुछ समझ में नहीं आया.

उसकी बुद्धि सुधारने के लिए अष्टावक्र ने उसे शाप दे दिया कि तू सबसे कुरूप औऱ कुटिल सर्प जाति का होकर पृथ्वी पर पड़ा रहे. शाप मिलते ही वह भयभीत हो गया और मुनि के पांव में लोट गया.

मुनि का क्रोध शांत हो गया. उन्होंने बताया कि श्रीहरि अवतार लेने वाले हैं. वह स्वयं तुम्हारे उदर में प्रवेश करके तुम्हारा उद्धार करेंगे. वही अघासुर अनंत काल से उद्धार की प्रतीक्षा कर रहा था.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

सूचनाः रविवार को पद्मिनी एकादशी है.

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