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वे तीनों अपने गुरुजी की इच्छा पूरी करने निकले और चलते-चलते पास के जंगल में पहुंचे लेकिन वहां पर तो मुश्किल से मुठ्ठी भर सूखी पत्तियां थीं. वे सोच में पड़ गये कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा?
इतने में उन्हें दूर से आता हुआ किसान दिखाई दिया. तीनों उसके पास पहुंचे उससे विनम्रतापूर्वक याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दे.
किसान ने बताया कि उसने सूखी पत्तियों से तो अपना चूल्हा जला लिया. कुछ बचा ही नहीं है. अब, वे तीनों, पास के ही एक गांव की ओर पत्तियां तलाशने बढ़े.
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वहाँ वे पत्तियों के एक व्यापारी के पास गए और उससे एक थैला भर सूखी पत्तियों का प्रबंध करने की प्रार्थना की.
व्यापारी ने कहा- तुमने तो देर कर दी आने में. पत्तियों के तो मैंने दोने बनाकर बेच दिए. अब तो मेरे पास नहीं हैं.
शिष्यों ने कहा- हमें गुरू को दक्षिणा में सूखी पत्तियां देनी हैं. कोई तो रास्ता बताओ कि आखिर कहां मिलेंगी हमें पत्तियां.
इस पर व्यापारी ने कहा- तुम एक बूढी माता के पास चले जाओ. वह सूखी पत्तियां एकत्रित किया करती थीं.
तीनों बूढ़ी माता को खोजते पहुंचे पर भाग्य ने यहाँ भी साथ नहीं दिया क्योंकि बूढी माँ तो उन पत्तियों को अलग-अलग करके कई प्रकार की औषधियाँ बनाया करती थीं और उन्होंने उसे कूट लिया था.
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निराश होकर वे तीनों खाली हाथ ही गुरुकुल लौट गये.
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