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जीवनचक्र भी ऐसा ही है. जो आता है वह जानता है कि उसे चले जाना है. जो सिर्फ इल लोक के ऐश्वर्य में फंसे रहते हैं उनकी गति बाकी राजाओं सी होती है. जो इस लोक औऱ परलोक दोनों की सोचते हैं वे संकट से निकल जाते हैं.

इस लोक के सुख को अपनी जरूरत से प्राप्त करने में तो जुटे ही रहते हैं. परलोक सुधारना है तो नेक कर्म करिए. अपने सारे कर्म ईश्वर को समर्पित करें. जमा-खाता रखिए और स्मरण करते रहिए कि आपके नेक कर्म ज्यादा जमा हुए हैं या बुरे कर्म क्योंकि गति उसके अनुरूप ही होगी.

संकलनः रामकुमार ओझा
संपादनः राजन प्रकाश

यह कथा गुना मध्य प्रदेश से रामकुमार ओझा ने भेजी. रामकुमारजी जीवनयापन के लिए स्वव्यवसाय करते हैं, शेष समय धर्मचर्चा में बीतता है.

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