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रवि तुरंत उठ बैठा. शीघ्र ही मंदिर जाकर वहां भगवान नृसिंह पर चढाये गये, प्रयोग किये हुए फूल माला और अन्य निर्माल्य सामग्री लाकर समूचे बागीचे में छींट दिया.
उसने निर्माल्य को बागीचे के चारों तरफ इस कुशलता से बिखेर दिया ताकि जो कोई भी फूल तोड़ने का प्रयास करता उसे निर्माल्य का संपर्क अवश्य ही होना था.
दरअसल वृंदावन के पुष्पों की चोरी देवराज इंद्र का पुत्र जयंत कर रहा था. हर रात कुछ पहर रात बीत जाने के बाद एक बहुत ही सुंदर यान पर सवार होकर जयंत कुछ अप्सराओं के साथ वहां आता था.
उसे वृंदावन की शोभा बहुत भा गई थी. इसलिए वह उसमें अप्सराओं संग विहार करता था और सुगंध के लोभ से सारे फूल तुड़वा कर अपने यान में रखकर चलता बनता.
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