गोवत्स द्वादशी बछवारस
गोवत्स द्वादशी बछवारस की पूजा कथा

गोवत्स द्वादशी (Govats Dwadashi) बछवारस (Bachwaras) प्रकृति और गौमाता में समस्त देवताओं का दर्शन करने वाले भारत की आदिकाल से प्रचलित पूजा है. कृषि और पशु एक दूसरे के पूरक रहे हैं. उसी का उत्सव मनाने वाले गोवत्स द्वादशी बछवारस की पूजा विधि प्रस्तुत कर रहे हैं.

गोवत्स द्वादशी बछवारस

 

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गोवत्स द्वादशी बछवारस संक्षिप्त पूजन विधि

गोवत्स द्वादशी बछवारस के दिन प्रात:काल पवित्र नदी या सरोवर अथवा घर पर ही विधिपूर्वक स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं. व्रत का संकल्प किया जाता है. इस व्रत में एक समय ही भोजन किया जाने का विधान होता है.

गोवत्स द्वादशी बछवारस के दिन गाय को बछडे़ सहित स्नान कराते हैं. फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढा़या जाता है. दोनों के गले में फूलों की माला पहनाते हैं. दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हैं.तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन यानी स्नान कराना चाहिए.

गोवत्स द्वादशी बछवारस को गोस्नान कराते समय मंत्र पढ़ें –

क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते|
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:||

मंत्र का अर्थः समुद्र मंथन के समय क्षीर सागर से उत्पन्न सुर तथा असुरों द्वारा नमस्कार की गई देवस्वरुपिणी माता, आपको बार-बार नमस्कार है. मेरे द्वारा दिए गए इस अर्ध्य को आप स्वीकार करें.

इस विधि को करने के बाद गाय को उड़द से बने भोज्य पदार्थ खिलाने चाहिए और निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए. मंत्र है –

सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता |
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस ||
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते |
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी ||

मंत्र का अर्थः

हे सुरभि, हे जगन्माते, हे श्रीविष्णु के चरणों में स्थित देवी, हे सर्वदेवमयी आप मेरे द्वारा दिए इस अन्न को ग्रहण करें. सभी देवताओं द्वारा अलंकृत माता नन्दिनी आप मेरा मनोरथ पूर्ण करें.

पूजन करने के बाद गोवत्स की कथा सुनी जाती है. सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्टदेव तथा गौमाता की आरती की जाती है. उसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है.

गोवत्स द्वादशी बछवारस व्रत-पूजन की विधि संक्षेप में पुनः समझ लें.

गोवत्स द्वादशी बछवारस का व्रत किस प्रकार से रखना है और आपको इसकी व्रत विधि बताने के लिए हमने आपको तरीके बताये है आप इन तरीको से इस द्वादशी का व्रत रख सकते है :

  1. द्वादशी के दिन सुबह उठ कर नित्य काम से निवृत्त होकर स्नान करें.
  2. फिर गाय व बछड़े को भी नहलायें. नहलाने के लिए मंत्र ऊपर बताया है.
  3. गाय व उसके बछड़े दोनों को नए वस्त्र ओढ़ा दें.
  4. उनके तिलक करे और फूल माला पहनायें.
  5. गौमाता के पैरो में से धूल को उठा कर उस धूल से अपने तिलक लगा लें.
  6. गाय और बछड़े को भीगे हुए अंकुरित चने , अंकुरित मूंग , मटर , चने के बिरवे , जौ की रोटी आदि का भोग लगाएं. पूजन-भोग लगाने का मंत्र भी ऊपर बतलाया है.
  7. उसके बाद अपने इष्टदेव व गाय व बछड़े की विधिपूर्वक पूजा करके गौवत्स द्वादशी की कथा सुनें.
  8. इस दिन केवल आपको पूरे दिन में एक समय ही भोजन करना होता है.  आप दिन में फलाहार कर सकते हैं और रात्रि को अपना उपवास तोड़ सकते हैं.

गोवत्स द्वादशी बछबारस की कई कथाएं प्रचलित हैं. त्योहारों की कई कथाएं क्षेत्र विशेष में प्रचलित होती हैं. गोवत्स द्वादशी बछवारस से जुड़ी सभी कथाएं आपके लिए अगले पोस्ट में दी जा रही हैं. ताकि आप ज्यादा से ज्यादा गौ कथा पढ़कर, लोगों को सुनाकर इसका पुण्य अर्जित करें.

गोवत्स द्वादशी बछवारस व्रत इतना प्रभावशाली है कि राजा उत्तानपाद की पत्नी सुनीति ने इस व्रत से ध्रुव को पुत्ररूप में प्राप्त किया था.

गोवत्स द्वादशी बछवारस की सबसे अधिक प्रचलित कथा

सबसे पहले वह कथा जो सबसे अधिक प्रचलित है- प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नामक एक नगर था. वहां देवदानी नाम का राजा राज्य करता था. उसके गौशाले में बहुत सी गायें व भैंसे थी. उनमें से एक गाय और एक भैंस विशेष थी.

राजा की दो रानियां थीं. एक का नाम था ‘सीता’ और दूसरी का नाम था- गीता. दोनों रानियां गौशाले में आया करती थीं. सीता को उस भैंस से न जाने कैसे बड़ा ही लगाव हो गया था. वह उससे बहुत नम्र व्यवहार करती थी और अपनी सखी के समान प्यार करती थी.

वहीं राजा की दूसरी रानी गीता का लगाव एक गाय से हो गया था. उसके लिए भी वह गया उसकी सखी-सहेली के समान थी. गाय के बछडे़ से रानी गीता पुत्र के समान प्यार और व्यवहार करती थी.

दोनों रानियों का गोशाला के एक-एक पशु के साथ ऐसा गहरा प्रेम हुआ तो गाय और भैंस के बीच भी ईर्ष्या का भाव पैदा हो गया. भैंस ने इस अवसर का लाभ उठाने का सोची.

भैंस ने एक दिन रानी सीता से कहा- हे सखी, मेरी कोई औलाद नहीं है लेकिन उस गाय के एक बछडा़ है. आप मुझे अपनी सखी मानती हैं पर मेरे संतान नहीं है तो गीता रानी इस बात को लेकर ताने देती हैं. मेरे बहाने वह आपकी खिल्ली उड़ाती हैं. आपका उपहास होता देख मुझे अच्छा नहीं लगता.

रानी सीता भैंस की बातों में आ गई और यह सोचकर कुढ़ गई कि दूसरी रानी मुझसे ईर्ष्या करती है. मेरी सखी का अपमान करती है और मेरे ऊपर ताने कसती है. इस पर सीता ने कहा- यदि ऐसी बात है तो तू चिंता मत कर मैं सब ठीक कर लूंगी.

सीता ने गीता को सबक सिखाने के लिए सोचा कि मैं तो उसकी सखी गाय को ही सबक सिखाऊंगी तब उसकी अक्ल ठिकाने आएगी. सीता ने उसी दिन गाय के बछडे़ को काटकर गेहूं के ढेर में दबवा दिया. गाय अपने बच्चे के लिए रोती-बिलखती रही उसके साथ-साथ रानी गीता भी खूब रोई.

रानी सीता और उसकी सखी भैंस दोनों ही अंदर ही अंदर खुश थे. इस घटना के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं चलता किंतु जब राजा भोजन करने बैठा तभी मांस और रक्त की वर्षा होने लगी. महल में चारों ओर रक्त तथा मांस दिखाई देने लगा.

राजा की भोजन की थाली में भी मल-मूत्र की बास आने लगी. यह देखकर राजा को बहुत चिंता हुई. तभी आकाशवाणी हुई- ‘राजा! तेरी रानी ने गाय के बछडे़ को काटकर गेहूं में दबा दिया है. इसी कारण यह सब हो रहा है. तुझे इसका प्रायश्चित करना होगा.

राजा ने कहा- मैं पश्चाताप को तैयार हूं. मुझे क्या करना होगा.

आकाशवाणी हुई कि कल गोवत्स द्वादशी है. इसलिए कल अपनी भैंस को नगर से बाहर निकाल दीजिए और गाय तथा बछडे़ की पूजा करो तभी प्रायश्चित होगा. आप कल गाय का दूध तथा कटे फलों का भोजन में त्याग करें. इससे तुम्हारा पाप नष्ट हो जाएगा और बछडा़ भी जिन्दा हो जाएगा.

राजा ने ऐसा ही किया. जैसे ही राजा ने मन से बछडे को याद किया वैसे ही बछडा गेहूं के ढेर से निकल आया. यह देख राजा प्रसन्न हो गया. उसी समय से राजा ने अपने राज्य में आदेश दिया कि सभी लोग गोवत्स द्वादशी का व्रत करें.

जो लोग बछवारस का व्रत नहीं रख पाते उनके लिए कुछ वैक्लपिक कार्य हो सकते हैं. गौशाला में जाकर गाय की सेवा करें. गौ प्रेमियों को बछवारस से जुड़ी कथाएं सुनाएं. इस तरह गौ महिमा का प्रचार करना चाहिए.

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