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कुछ देर चुप रहने के बाद बोले- तुम्हारी इस करूण कथा को सुनकर मैं भी विचलित हो गया हूं पर क्या करूं. विधाता ने मुझे यही उत्तरदायित्व सौंपा है. विधि के विधान की रक्षा के लिए हमें यह कार्य करना ही होता है अन्यथा पृथ्वी पर असंतुलन हो जाएगा.

यह सुनकर दूत ने साहस करके पूछा- महाराज आपकी बात सर्वथा सत्य है. यदि प्राणियों के प्राण न हरे गए तो पृथ्वी पर स्थान ही नहीं बच जाएगा. उसकी संपदा एक दिन में ही समाप्त हो जाएगी परंतु हे महाराज क्या यह नहीं हो सकता कि किसी के भी प्राण असमय न लिए जाएं.

उस राजकुमार की अवस्था तो मात्र सोलह वर्ष की थी. उसने अपना जीवन देखा ही नहीं था. यदि उसे जीवन में कुछ वर्ष मिल जाते और वह जीवन के सुखों का उपभोग करने के उपरांत काल कवलित होता तो संभवतः ऐसा दुख न होता.

क्या ऐसा कोई उपाय नहीं हो सकता जिससे प्राणी असमय मृत्यु के शिकार न हो जाए. आप इतना तो कर ही सकते हैं. कृपया ऐसा उपाय बताइए जिससे प्राणियों को अकाल मृत्यु नो भोगनी पड़े.

इस पर यमराज ने कहा- तुम उचित कहते हो. इसका एक रास्ता मैं बताता हूं.

जो प्राणी कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात में मेरा पूजन करके दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृ्त्यु का भय नहीं रहेगा. उस जीव को जीवनभर धर्ममार्ग पर चलने का वचन देना होगा. जो ऐसा करेगा उसे कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होगी. वह समस्त सुखों का उपभोग करने के उपरांत ही मृत्यु को प्राप्त होगा.

यमदेव की पूजा के बाद घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर मुख वाला दीपक जिसमें कुछ पैसा और कौड़ी डालकर पूरी रात्रि जलाना चाहिए. दीपदान करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-

मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्र्योदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति।।

तभी से धनतेरस के दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाये जाते हैं. इसे अकाल मृत्यु को टालने वाला बताया गया है.

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