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बागीचे के दुर्लभ सुगंधित फूलों से मालाएं तैयार करता था. कुछ मालाएं भगवान नृसिंह को अर्पण करता, कुछ ब्राह्मणों को भेंट करता और बाकी को बाजार में बेचकर अपनी पत्नी और परिवार का पालन पोषण किया करता था.

बागीचे से ही उसकी आजीविका चलती थी. एक दिन रवि ने देखा कि बागीचे में एक भी फूल नहीं है. वह अचरज से भर गया क्यों कि एक दिन पहले उसने कुछ फूल और ढेरों कलियां देखी थीं. आज बागीचा सफाचट. उसे कुछ समझ में नहीं आया.

अगले दिन भी ऐसी ही स्थिति देख कर वह तो हैरान ही रह गया. बदहवास बागीचे में घूमता रहा. कहीं किसी के आने का कोई संकेत न दिखा. वैसे किसी मनुष्य का यहां आना असंभव था पशुओं की तो बात ही क्या. पक्षियों का ये काम नहीं हो सकता था.

रवि ने विशेष निगरानी की ठानी. पूरे दिन बागीचे में ही रहा और रात में खेत में ही सो गया. कुछ रात बीतने पर वह सचेत हुआ और यह देखने के प्रयास में छिपकर बैठ गया कि क्या कोई यहां आता है, आता है तो कौन और कहां से?

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