शनिदेव ने राजा दशरथ को शनिकोप का प्रभाव सुनाया कि कैसे उनकी कोपदृष्टि के कारण गणेशजी को मस्तकविहीन होना पड़ा. फिर शनिदेव ने दशरथ से कहा कि वह रोहिणी पर से आंशिक दृष्टि हटा लेंगे.

राजा दशरथ ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनि स्तोत्र की रचना की और प्रजा को उसका पाठ करके शनिदेव को प्रसन्न करने को कहा. इस तरह शनि की कुदृष्टि हटी.

राजा दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए करना चाहिए. गणेशजी के शीशविहीन होने को लेकर पुराणों में कई मान्यताएं हैं. एक मान्यता शनिदृष्टि वाली भी है.

सत्य क्या है यह तो गजानन ही जानें. हम तो बस आपके सामने वे प्रसंग रख देते हैं ताकि आप उनका रस ले सकें. आज हम शनिदृष्टि के कारण गणेशजी के शीसविहीन होने का प्रसंग भी देंगे.

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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