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उनके आते ही भारी वर्षा हुई. अंगदेश में उत्सव का माहौल बन गया. चूंकि स्त्री के मोह में उलझाकर ऋंगी को लाया गया था इसलिए वर्षिणी और रोमपद ने निर्णय किया कि उनका विवाह एक योग्य कन्या से कराया जाए. शांता का विवाह ऋंगी से कर दिया.
ऋंगी ने रोमपाद से यज्ञ आदि करवाया और उन्हें उत्तराधिकारी प्राप्त हुआ. दशरथ भी उत्तराधिकारी विहीन होने से दुखी रहते थे. महर्षि वशिष्ठ ने सलाह दी कि ऋंग ऋषि से पुत्र कामेष्ठि यज्ञ करवाएं तो पुत्र की प्राप्ति होगी.
ऋंगी ने पहले तो मना कर दिया लेकिन अपनी पत्नी के कहने पर वह दशरथ के पुत्र कामेष्ठि यज्ञ के मुख्य ऋत्विक बनने को राजी हो गए. शांता तथा ऋंग ऋषि अयोध्या आए.
पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता है. राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को बहुत-सा धन दिया जिससे ऋंग ऋषि के पुत्र और कन्या का भरण-पोषण हुआ.
यज्ञ से प्राप्त खीर से राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ. ऋंग ऋषि फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए वन में जाकर तपस्या करने लगे.
भागवत पुराण में संक्षेप में यह आता है कि दशरथ ने अपने दामाद ऋंगी से पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया था. बाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में ये प्रसंग नहीं हैं लेकिन दक्षिण भारत के रामायण में शांता का प्रसंग विस्तृत रूप से आया है.
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्
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