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प्रभु की कृपा चाहिए तो अपने काम को भी दूसरों की भलाई से जोड़कर देखो. ईमानदारी और परोपकार के एक रुपए में जो ताकत होती है वह बेईमानी के लाख रूपए में भी नहीं.
सज्जनों की परीक्षा के लिए भगवान कष्ट देते हैं. वह परखते हैं कि कहीं ये ईमानदारी क्षणिक तो नहीं?
कहीं बेईमानी का मौका मिलने पर यह गायब तो नहीं हो जाएगी? किसी घर में बसने से पहले भगवान उसकी मजबूती जांचते हैं, तसल्ली करते हैं.
जब आपका काम दूसरों का ज्यादा से ज्यादा हित साधने के लिए होने लगता है तो समझिए आपकी परेशानी भगवान की चिंता हो जाती है. उसे दूसरों के शरीर में बैठे अपने स्वरूप की भी तो रक्षा करनी है.
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह, जिसको कुछ नहीं चाहिए वे शाहन के शाह
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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