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प्रहलाद के पौत्र और विरोचन के पुत्र राजा बलि बड़े दान-पुण्य वाले राजा थे.

असुर कुल में उत्पन्न होने पर भी उनका संस्कार देवों जैसा था. वह परमार्थ में यज्ञ कराते. अतिथि सत्कार करते थे. इससे लक्ष्मीदेवी उनके महल और कोष में वास करती थीं.

राजा बलि के ऐश्वर्य के आगे देवता भी झुकते थे. बलि को इसका गर्व हो गया था. धन का गर्व आते ही महालक्ष्मी उस स्थान का त्याग करने के लिए बहाने तलाशना शुरू कर देती हैं.

बलि ने देवी को स्वयं इसके अवसर दे दिए. बलि पर मद हावी हुआ तो उन्होंने मांस-मदिरा का सेवन और ऋषियों का अपमान करना आरंभ कर दिया.

हे युधिष्ठिर, लक्ष्मी चंचला हैं. वह किसी एक व्यक्ति के वश में लंबे समय तक नहीं रहतीं. पलायन का कारण मिलते ही वह विदा होती हैं.

बलि की बुद्धिभ्रष्ट होते देख लक्ष्मी ने पलायन किया. इंद्र देवराज थे लेकिन बलि के ऐश्वर्य के आगे वह फीके थे. इंद्र भी बलि से दबते थे. इसलिए वह बलि के महल के आस-पास ही दृष्टि बनाए रखते थे.

इंद्र ने बलि के महल से एक परम तेजस्वी देवी को निकलते देखा तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ. वह तत्काल उनके समक्ष पहुंचे और आदरपूर्वक पूछा- हे देवी, आप कौन हैं? दैत्यराज बलि को त्यागकर आप कहां जा रही हैं?

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