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उन बछ्ड़ों के बीच में उन्हें एक बछ्ड़े को देखकर शक हुआ. उन्होंने तुरंत पहचान लिया. दरअसल, वह कोई बछ्ड़ा नहीं था बल्कि कंस का भेजा राक्षस था जिसने बछ्ड़े का रूप धारण किया और श्रीकृष्ण के पशुओं में जा मिला.

पूतना, तृणावर्त आदि सहयोगियों के मारे जाने से हतास कंस ने सभी मित्रों को बुलाकर आदेश दिया कि वे गोकुल जाएं और उसके शत्रु का संहार करें. वत्सासुर ने कंस को निर्भय रहने का भरोसा दिया और गोकुल पहुंचा था.

वह प्रभु को हानि पहुंचाने के उचित अवसर की प्रतीक्षा में था. उसने गाय के बछ्ड़े का रूप धारण किया था, इसीलिए उसे वत्सासुर कहा गया. असुर प्रभु को हानि पहुंचाने की ताक में था और प्रभु उसके उद्धार का मुहूर्त तय कर रहे थे.

जो प्रभु संपूर्ण भूमंडल का पालन करते हैं उनसे वत्सासुर कैसे छिपा सकता था? श्रीकृष्ण ने बलरामजी को संकेतों में बता दिया कि उनके पशुधन के बीच यह राक्षस छुपा है. दोनों भाई धीरे-धीरे बढ़े और वत्सासुर के पास पहुंचे.

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