परंतु तुम्हें एक बात का खास ध्यान रखना है. रास्ते में तुम इस शिवलिंग को तुमने कहीं पृथ्वी पर रख दिया तो यह वहीं स्थापित होकर अचल हो जाएगा. इस शिवलिंग स्वरूप में तुम्हारे पास विराजमान रहूंगा.
भगवान द्वारा ऐसा कहने पर रावण उस शिवलिंग को साथ लेकर लंका की ओर चल दिया. भगवान जानते थे कि हठयोगी रावण किसी भी समय उनकी उपस्थिति का दुरुपयोग कर सकता है.
इसलिए उन्होंने माया दिखाई. उनकी माया के प्रभाव से रावण को रास्ते में पेशाब करने की ऐसी इच्छा हुई कि वह हठयोगी मूत्र के वेग को रोकने में असमर्थ हो गया.
उसे वहीं एक ग्वाला दिखाई दिया. उसने मूत्र त्यागने के लिए शिवलिंग को उस ग्वाले के हाथ में पकड़ा कर स्वयं पेशाब करने के लिए बैठ गया. प्रभु की लीला ऐसी थी कि उसका मूत्र समाप्त नहीं हुआ.
एक मुहूर्त बीतने के बाद ग्वाला शिवलिंग के भार से पीड़ित हो उठा और उसने शिवलिंग को पृथ्वी पर रख दिया. पृथ्वी पर रखते ही वह मणिमय शिवलिंग वहीं पृथ्वी में स्थिर हो गया.
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