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तुम वर्षों के तप के बाद भी अहंकारग्रस्त ही रहे. यह नहीं जान सके कि सबमें एक ही आत्मतत्व समाया हुआ है. तुम्हारी तपस्या अधूरी और निष्फल रही. अत: आज से तुम इस डाकू की सेवा करो, और तप को पूर्ण करो.
उसी तपस्या में फल है, जो अहंकाररहित होकर की जाए. अहंकार का त्याग ही तपस्या का मूलमंत्र है और यही भविष्य में ईश्वर प्राप्ति का आधार बनता है. झूठे दिखावे तप नहीं हैं, ऐसे लोगों की गति वही होगी जो साधु की हुई.
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्
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