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एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए. लंबे समय तक कठोर तप के कारण दुर्वासा का शरीर जीर्ण-शीर्ण हो गया था.

शरीर पर केवल अस्थियां शेष थीं. इस कारण वह कुछ अजीब से दिखते थे. ऋषि की जर्जर काया देखकर शाम्ब को हंसी आ गई.

इस अपमान से आहत दुर्वासा के चेहरे पर क्रोध का भाव आया. जिसे शाम्ब ने देखा तो जरूर पर इसका कोई पछतावा भी नहीं हुआ.

शाम्ब ने इसके लिए महर्षि से क्षमा भी नहीं मांगी. अत्यंत क्रोधी स्वभाव के दुर्वासा को शाम्ब की धृष्ठता पर बड़ा क्रोध आ गया.

उन्होंने शाम्ब को शाप दिया.

दुर्वासा बोले- नारायण के अंश होने के कारण तुम्हारे अंदर रूप और बल का होना स्वाभाविक है किंतु विनय, लज्जा, बड़ों का सम्मान और आतिथ्य भी होना चाहिए.

मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम कुष्ठ रोग से पीड़ित हो जाओगे. जिस रूप और बल का तुम्हें अभिमान हुआ है उसका क्षय हो जाएगा और तुम मुझसे भी ज्यादा कुरूप हो जाओगे.

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