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और्व का तप जब समाप्त हुआ तब तक और्व क्रोधाग्नि का स्वरूप बन चुके थे. लोग उन्हें अग्नि का मानव रूप कहते थे. आखिर एक दिन अपने गुस्से की आग से उन्होंने पृथ्वी को भस्म करने की ठान ली.

देवताओं को लगा कि और्व में ऐसी ताकत है कि वह ऐसा कर सकते हैं. वह बहुत घबराये पर तब तक और्व के पूर्वजोँ ने उन्हें ऐसा न करने का उपदेश दिया. और्व मान गये पर इस शरीरधारी अग्नि को देख कर देव, दानव, मानव सभी दहल गये.

सब मिलकर पितृलोक गए और वहां पर जाकर पितरों से कहा. और्व तो चलते फिरते ज्वालामुखी हैं, उनके भीतर बदले का लावा खलबला रह है, यदि वह फट पडे तो सब मारे जायेंगे आप उन्हें अपने क्रोध को समुद्र में डालने को कहें.

पितरों ने सबकी बात पर गौर किया और और्व को आदेश दिया कि तुम्हारा क्रोध तुम्हारे पास रहना समाज के लिए खतरनाक है, इसे सागर में समाहित कर दो. और्व ने पितरों के आदेश का पालन किया. शान्त होने पर अपना क्रोधानल सागर को दे दिया.

इधर कृतवीर्य के वंशजों ने लूटपाट कर धन और बल बढाया और अयोध्या पर आक्रमण कर उसे उसे जीत लिया. अयोध्या के राजा बाहु ने भागकर अपनी पत्नी के साथ उसी आश्रम में शरण ली जहां और्व रहते थे.

बाहु अपमान, दुःख और निराशा के चलते जल्द ही मर गए तो उनकी पत्नी भी उनके साथ सती होने के लिए तैयार हुईं. कालिंदी तब गर्भवती थीं और उनकी सौत ने उनको धीमा जहर दे रखा था.
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