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भक्ति कथाएं भक्तों द्वारा रची जाती हैं जब वे अपने आराध्य के ध्यान में विभोर हो जाते हैं. उन्हें संसार में सर्वत्र अपने आराध्य ही दिखते हैं. यही तो भक्ति की पवित्रता है.
भक्तिमय कथाओं का मूल्यांकन शब्दों में रचे बसे भक्त के भाव से करना चाहिए, तर्कशक्ति से नहीं. ऐसी ही एक छोटी सा भक्तिप्रसंग है, आनंद लीजिए.
आज कान्हा जी की मुस्कान रोके नहीं रुक रही. अकेले ही महल की छत पर बैठे हुए कृष्ण दूर आकाश में चांद को निहारते जा रहे हैं और मंद मंद मुस्कुराते जा रहे हैं
कान्हाजी बार-बार पीछे मुड़ के देख भी लेते हैं कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा और फिर अनायास ही अपने ख्यालों में खोकर मुस्कुराने लगते हैं और उसी समय अर्जुन वहां पर आ आ गये.
अपने सखा कृष्ण को अकेले में मुस्कुराता देखकर अर्जुन ने उनके आनंद में विघ्न डालना उचित ना समझा और चुपचाप एकांत में खड़े होकर भगवान् के दर्शन करने लगे.
अर्जुन सोचने लगे. आखिर भगवान् को इस चाँद में ऐसा क्या नज़र आ रहा है. जो ये इतना मुस्कुरा रहे हैं और फिर अर्जुन ने गौर से चाँद को ओर देखा तो आश्चर्य चकित रह गए.
चाँद में अर्जुन को साक्षात श्री राधारानी के दर्शन होने लगे. श्रीराधे भी यमुना के किनारे बैठी. यमुना की श्याम वर्ण लहरों में. अपने सांवरे के दर्शन कर रही थी और मुस्कुराती भी जाती थीं और कान्हा जी से बातें भी करती जाती थीं.
देख रहे हो कान्हा जी. आपके सखा अर्जुन. चुप-चाप हमारी बातें सुन रहे हैं.
श्रीराधे यमुना की लहरों में अपना हाथ लहराते हुई बोलीं. “अर्जुन से तो कुछ छुपा नहीं है, राधे!!!
वो तो बस मेरे आनंद में विघ्न उत्पन्न करना नहीं चाहता.
कान्हा जी गोरे चाँद की तरफ निहारते हुए बोले. “अगर ऐसा है. आपको अर्जुन इतने ही प्रिय हैं. तो आपने गीता का ज्ञान देते समय अर्जुन से एक बात छुपा के क्यूं रखी?”
राधे इठलाती हुई बोलीं. “वो इसलिए राधे की उस बात को सुनने के बाद अर्जुन को वहीँ समाधि लग जाती और वो युद्ध आदि कुछ भी नहीं कर पाता.”
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