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राजा ने सोचा कि ‘वास्तव में यह निर्दोष है. अब राजा सिपाहियों पर बहुत नाराज हुआ कि तुम लोगों ने एक निर्दोष पुरुष पर चोरी का आरोप लगाया है. तुम लोगों को दण्ड दिया जायेगा.
यह सुनकर चोर बोला- नहीं महाराज! आप इनको दण्ड न दें. इनका कोई दोष नहीं है. चोरी मैंने ही की थी.
राजा ने सोचा कि ‘यह साधुपुरुष है, इसलिए सिपाहियों को दण्ड से बचाने के लिए चोरी का दोष अपने सिर पर ले रहा है.
राजा बोला-तुम इन पर दया करके इनको बचाने के लिए ऐसा कह रहे हो पर मैं इन्हें दण्ड अवश्य दूँगा. चोर बोला- महाराज ! मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, चोरी मैंने ही की थी.
अगर आपको विश्वास न हो तो अपने आदमियों को मेरे पास भेजो. मैंने चोरी का धन जंगल में जहाँ छिपा रखा है, वहाँ से लाकर दिखा दूँगा. राजा ने अपने आदमियों को चोर के साथ भेजा.
चोर उनको वहाँ ले गया जहाँ उसने धन छिपा रखा था और वहाँ से धन लाकर राजा के सामने रख दिया. यह देखकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ.
राजा बोला- अगर तुमने ही चोरी की थी तो परीक्षा करने पर तुम्हारा हाथ क्यों नहीं जला? तुमने चोरी का धन भी लाकर दे दिया, यह बात हमारी समझ में नहीं आ रही है. ठीक-ठीक बताओ, बात क्या है?
चोर बोला- महाराज ! मैंने चोरी का धन छिपाया और एक सत्संग में जा बैठा. वहां मैंने सुना- जो भगवान की शरण लेकर पुनः पाप न करने का निश्चय कर लेता है उसको भगवान सब पापों से मुक्त कर देते हैं. उसका नया जन्म हो जाता है.
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Jai Mahakal
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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