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सर्प ने कहा- मैं तुम्हें डंसकर पूर्वजन्म का बदला लेने आया था, परन्तु तुम्हारी सज्जनता और सद्व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया. अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूं. मित्रता के उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूं. लो इसे अपने पास रखो.
इतना कहकर सर्प ने एर मणि राजा के सामने रखी और उलटे पांव अपनी बांबी की ओर लौट गया. सज्जनता और सद्व्यवहार ऐसे प्रबल अस्त्र हैं जिनसे दुष्ट प्रवृति के लोगों को भी जीता जा सकता है.
तुलसीदासजी कहते हैं- “सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई” अर्थात दुष्ट प्राणी भी अच्छी संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर चमकीला हो जाता है.
दुष्टों को पहले सुधारने का प्रयास करना चाहिए. यदि प्रयास निष्फल रहें तभी खल संग होहिं न प्रीति की नीति पर चलें.
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