[sc:fb]

सर्प ने कहा- मैं तुम्हें डंसकर पूर्वजन्म का बदला लेने आया था, परन्तु तुम्हारी सज्जनता और सद्व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया. अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूं. मित्रता के उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूं. लो इसे अपने पास रखो.

इतना कहकर सर्प ने एर मणि राजा के सामने रखी और उलटे पांव अपनी बांबी की ओर लौट गया. सज्जनता और सद्व्यवहार ऐसे प्रबल अस्त्र हैं जिनसे दुष्ट प्रवृति के लोगों को भी जीता जा सकता है.

तुलसीदासजी कहते हैं- “सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई” अर्थात दुष्ट प्राणी भी अच्छी संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर चमकीला हो जाता है.

दुष्टों को पहले सुधारने का प्रयास करना चाहिए. यदि प्रयास निष्फल रहें तभी खल संग होहिं न प्रीति की नीति पर चलें.

प्रभु शरणम् की सारी कहानियां Android व iOS मोबाइल एप्प पे पब्लिश होती है। इनस्टॉल करने के लिए लिंक को क्लिक करें:
Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें

हम ऐसी कथाएँ देते रहते हैं. फेसबुक पेज लाइक करने से ये कहानियां आप तक हमेशा पहुंचती रहेंगी और आपका आशीर्वाद भी हमें प्राप्त होगा. https://www.facebook.com/PrabhuSharanam कथा पसंद आने पर हमारे फेसबुक पोस्ट से यह कथा जरुर शेयर करें.

धार्मिक चर्चा में भाग लेने के लिए हमारा फेसबुक ग्रुप ज्वाइन करें. https://www.facebook.com/groups/prabhusharnam

यह प्रेरक कथा अशोक रघुवंशीजी के सौजन्य से WhatsApp के माध्यम से प्राप्त हुई. यदि आपके पास भी कोई प्रेरक कथा है तो हमें मेल से या WhatsApp से भेजें. कथा अप्रकाशित और एप्प की रूचि अऩुसार हुई तो उसे एप्प में स्थान देने का प्रयास करेंगे.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here