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ऋषियों ने सूतजी से शिव महापुराण का वर्णन करने का अनुरोध किया तो सूतजी ने उन्हें शिवपुराण सुनाना आरंभ किया. सूतजी ने ब्रह्माजी और उनके पुत्र नारद मुनि के बीच शिवतत्व को लेकर हुई चर्चा की कथा सुनाई थी.

नारद ने अपने पिता ब्रह्माजी से अनुरोध किया था कि उन्हें शिवतत्व का ज्ञान दें. ब्रह्माजी ने जो ज्ञान दिया था वह वेद व्यासजी के माध्यम से सूतजी को मिला और फिर सूतजी के माध्यम से संसार को प्राप्त हुआ.

ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच श्रेष्ठता को लेकर उपजे विवाद का निपटारा करने के लिए शिवजी ज्योतिर्लिंग स्वरूप में दोनों देवों के समक्ष प्रकट हुए. दोनों ने उनकी हर प्रकार से स्तुति करके उन्हे प्रसन्न कर लिया.

श्रीविष्णुजी ने बड़े विनीत भाव से भगवान शंकर से उन्हें प्रसन्न करने और शिवतत्व के बारे में पूछा. उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शिवतत्व का रहस्य ब्रह्माजी और विष्णुजी को सुनाया.

चारों वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्ण के लोगों को प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सर्वप्रथम अपने गुरू और इष्ट भगवान शंकर का प्रातःवंदन और स्मरण करना चाहिए.

स्नान के लिए रखे जल में सभी तीर्थों, समुद्रों, नदियों, पवित्र सरोवरों के जल का आह्वान करना चाहिए.

इसके उपरांत शिव-शिव का लगातार जप करते हुए आचमन करना चाहिए. फिर जल को सिर से लगाकार स्नान आरंभ करना चाहिए.

शुद्ध वस्त्र धारण करके एकांत में बिछे आसन पर बैठकर प्राणायाम और वंदना करनी चाहिए.

इसके उपरांत शिवलिंग में भगवान शिव का आह्वान करके पाद्य, अर्घ्य और आचमनीय अर्पण करके दुग्ध, दही, मधु, घी और जल से लिंग का अभिषेक करना चाहिए.

इसके बाद फूल, चंदन, धूप-दीप समर्पित करते हुए नमस्कार करके यह प्रार्थना करनी चाहिए-

अज्ञानाद्यदि वा ज्ञानाज्जपपूजादिकं मया।
कृतं तदस्तु सफलं कृपया तव शंकर।।

शिवजी के प्रति निष्ठा प्रकट करते हुए कहना चाहिए-

शिवे भक्तिः शिवे भक्तिः शिवे भक्तिर्भवे भवे।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम्।।

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