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भगवन, आप मुझे प्राणों से अधिक प्रिय हैं. आपके बिना मेरी कल्पना ही नहीं. स्वामी, आपने ही तो स्त्रियों के व्यवहार में ईर्ष्या का प्रवेश कराया है. उसी ईर्ष्या भाव से पीड़ित होकर मैंने निरपराध सुशीला को शाप देने का अपराध किया. क्षमा करें प्रभु!

राधाजी श्रीकृष्ण का आह्वान करने लगीं. अंततः श्री कृष्ण प्रकट हुए तो राधा को चैन पड़ा. उधर गोलोक से निष्कासित सुशीला ने हजारों वर्ष तक अन्न-जल त्यागा और एक पैर पर खड़े होकर कठोर तप करने लगी.

सुशीला के कठिन व्रत लेकर भगवान श्रीकृष्ण का चिंतन करते देख देवता भी घबरा गए. तप के कारण सुशीला के शरीर से निकलने वाले तेज ने सूर्य को भी ढक लिया.

सभी देवता भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए और उन्हें सुशीला की घोर आराधना और उससे देवों को हो रही पीड़ा के बारे में बताया.

भगवान ने सुशीला को दर्शन दिया- तुम्हारी भक्ति की शक्ति मुझे यहां खींच लाई. मैं तुम्हारे तपोव्रत से प्रसन्न हूं. तुम्हें जो भी चाहिए वरदानस्वरूप मांग लो.

सुशीला ने प्रभु से कहा- सृष्टि में आपसे बढ़ कर कुछ भी नहीं. यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे अपनी पत्नी बनने का सौभाग्य प्रदान करें.

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