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-प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि आज मैं चोर, पाखंडी और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा. रात्रि को जागरण कीर्तन करूँगा.

-‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश मंत्र का यथासंभव जाप करें. श्रीराम, श्रीकृष्ण, नारायण आदि के मंत्रों और विष्णु सहस्रनाम का सस्वर पाठ करें.

-भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें.

-इस दिन यथा‍शक्ति दान करना चाहिए किंतु किसी का दिया हुआ अन्न आदि ग्रहण न करें. दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है.

वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए. त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें.

-व्रत के (दशमी, एकादशी और द्वादशी)- इन तीन दिनों में कांसे के बर्तन, मांस, प्याज, लहसुन, मसूर, उड़द, चने, कोदो (एक प्रकार का धान), शाक, शहद, तेल और अत्यम्बुपान (अधिक जल का सेवन)- सेवन न करें.

आप इस व्रत को तीन दिन का समझ सकते हैं. पहले दिन यानी दशमी को और तीसरे दिन यानी द्वादशी को दिन में सिर्फ एक बार भोजन करना होता है. भोजन में जौ, गेहूं, मूंग, सेंधा नमक, कालीमिर्च, शर्करा और गोघृत आदि का प्रयोग कर सकते हैं.

एकादशी को तो व्रत रहता ही है. जो फलाहार करते हैं उन्हें गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए. आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन कर सकते हैं.

जुआ, निद्रा, पान, परायी निन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, मैथुन, क्रोध तथा झूठ, कपटादि अन्य कुकर्मों से नितान्त दूर रहना चाहिए. बैल की पीठ पर सवारी न करें.

भूलवश किसी निन्दक से बात हो जाय तो इस दोष को दूर करने के लिए भगवान सूर्य के दर्शन तथा धूप दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा माँग लेनी चाहिए.

-एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगायें, इससे चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है. इस दिन बाल नहीं कटाएं.

मधुर बोलें. अधिक न बोलें और सत्य ही बोलें. असत्य एकदम नहीं बोलना चाहिए. इस दिन यथाशक्ति अन्नदान करें. प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए.

एकादशी के दिन किसी सम्बन्धी की मृत्यु हो जाय तो उस दिन व्रत रखकर उसका फल संकल्प करके मृतक को देना चाहिए और श्रीगंगाजी में अस्थि प्रवाहित करने पर भी एकादशी व्रत रखकर व्रत फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिए.

प्राणिमात्र को अन्तर्यामी का अवतार समझकर किसीसे छल कपट नहीं करना चाहिए. अपना अपमान करने या कटु वचन बोलने वाले पर भूलकर भी क्रोध नहीं करें. मन में दया रखनी चाहिए.

इस विधि से व्रत करनेवाला उत्तम फल को प्राप्त करता है. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्टान्न, दक्षिणादि से प्रसन्न कर उनकी परिक्रमा कर लेनी चाहिए.
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